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मिर्च की वैज्ञानिक खेती

मिर्च की वैज्ञानिक खेती 


मिर्च की व्यवसायिक खेती करने से अधिक लाभ कमाया जा सकता हैं।  प्रायः लोग कम या ज्यादा मात्रा में मिर्च का प्रयोग करतें हैं।  अधिक तीखी, हरी या लाल मिर्च मसालों के रूप में तथा मध्यम चरपरी लाल मोटी मिर्च अचार बनाने में प्रयोग की जाती हैं। 

१:- मुक्त परागित 
एल सी ए -235 :- इस किस्म के पौधे सघन , छोटी-छोटी गांठो वाले छातानुमा होते हैं। पत्त्तियाँ छोटी, फल 5-6 सेंटीमीटर लम्बे, नुकीले, गहरे, हरे रंग के काफी चरपरे होतें हैं।  हरी सब्ज़ियों  साथ प्रयोग करने के लिए यह उपयुक्त किस्म हैं। आचार बनाने व निर्यात के लिए भी यह उपयुक्त किस्म हैं।  इसके हरे फलों की पैदावार 75-100 कुंतल/हेक्टेयर तथा सूखे फलों की 37 कुंतल/हेक्टर होती हैं। 

ऐ के -2 :- इस किस्म के पौधे छोटे होते हैं तथा फल नीचे की तरफ लगतें हैं।  हरे फल के उत्पादन के लिए यह अच्छी किस्म हैं। इस किस्म के फलो की तुड़ाई 3-4 बार में समाप्त हो जाती हैं।  इसके हरे फलो का उत्पादन लगभग 200 कुंतल/हेक्टर तथा सूखे फलो की 60 कुंतल/हेक्टयर होती हैं।  इस किस्म के पौधो की रोपाई 45x45 सेंटीमीटर पर करनी चाहिए। 

पूषा ज्वाला :- इस किस्म के पौधे छोटे, झाड़ीनुमा, पत्तीयाँ तथा फल हल्के हरे रंग के फल 10-15 सेंटीमीटर लम्बे पत्तले तथा अधिक चरपरे होतें हैं।  फल पकने के बाद लाल रंग के जो सूखने पर टेड़े-मेढे हो जातें हैं।  इसके हरे फलों की  पैदावार 190 कुंतल/हेक्टर तथा सूखे फलों की 54 कुंतल/हेक्टर होती हैं।       

पूषा  सदाबहार :- इस किस्म के पौधे 60-80 सेंटीमीटर लम्बें पत्तियां सामान्य किस्मो की अपेछा अधिक लम्बी व चौड़ी होती हैं।  फल 6-14 के गुछो में लगतें हैं तथा फल का निचला हिस्सा ऊपर की तरफ मुड्ढ़ा होता हैं। फल आकार में 6-8 सेंटीमीटर लम्बे तथा 3.0 से 4.0 मिलीमीटर मोटाई के होतें हैं।  इस किस्म की मुख्य विशेस्ता यह हैं की एक बार पौधा लगा देने पर 2-3 वर्षो तक फल मिलते रहतें हैं।  इसके हरे फलों की पैदावार 110-120 कुंतल/हेक्टयेर तथा सूखे फलों की 40 कुंतल/हेक्टयेर  होती हैं। 

२:- संकर किस्में 
तेजस्वनी :- इसकी फलियां मध्यम आकार की तथा गहरे हरे रंग की होती हैं।  यह एक अच्छी उपज देने वाली किस्म हैं।

https://youtu.be/7wyZvw37o90

भूमि और भूमि की तैयारी :- इसकी अधिक उपज के लिए बलुई दोमट या दोमट भूमि अच्छी  पायी गयी हैं।  ऐसी मिटटी जिसका पी एच मान 6 से 7.5 के बीच हो खेती के लिए उपयुक्त होती हैं।  खेत की 2 से 3 जुताई करके पाटा लगा देतें हैं ताकि खेत की मिटटी भुरभुरी हो जाएँ।  

बुआई का समय :- अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं की मिर्च की बुआई उपयुक्त समय से करे। उत्तर भारत के मैदानी छेत्रो में पौधशाला में बीज की बुआई का उपयुक्त समय जून-जुलाई तथा रोपण का उचित समय जुलाई-अगस्त हैं।  

बीज की मात्रा :- एक हेक्टयर खेत में मिर्च की खेती के लिए 200-300 ग्राम बीज की आवस्य्क्ता होती हैं।  संकर किस्मो की दशा में 150-200 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आव्सय्कता होती हैं।        

पौधशाला में बीज की बुआई :- मिर्च के बीज की सर्वप्रथम पौधशाला में बुआई करके पौध तैयार कर लेते हैं।  तत्पचात पौध तैयार होने पर इनका रोपण मुख्य खेत में करतें हैं।  बीज शैया के लिए जीवांसयूक्त मिटटी काफी अच्छी  होती हैं। अतः  मिटटी में गोबर या कम्पोस्ट की खाद डालकर अच्छी  प्रकार मिला दे। अच्छी पौध तैयार करने के लिए प्रति वर्ग सेंटीमीटर की दर से 10 ग्राम डाई  अमोनियम फास्फेट और 1 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद मिला दे।  बीजो को ऊंची उठी हुयी क्यारियों में डालना उचित होता हैं। क्यारियां जमीन की सतह से 20-25 सेंटीमीटर उठी हुई होनी चाहियें। क्यारियों की लम्बाई 3 मीटर तथा चौड़ाई 1 मीटर रखतें हैं।

                                                                    यदि पौध तैयार करने हेतु लो-टनल का प्रयोग किया जा रहा हैं तो क्यारियो का आकार लो-टनल की साइज़ के आधार पर 7-10 मीटर x0.75 मीटर x0.25 मीटर रखना चाहिए। लो-टनल में पौधे स्वस्थ, किट-व्याधि रहित तथा लगभग 20 दिनों में तैयार हो जाती हैं।  इसमें बीज का जमाव अधिक होता हैं। संरछित दशा में तथा प्रतिकूल मौसम परिस्थिति में पौध उत्पादन की यह सबसे सर्वोत्तम तकनिकी हैं।


रोपण एवं दुरी :- जहां तक हो सके मिर्च के पौधों का रोपण शाम के समय करना चाहुये। साफ़ मौसम या तेज धुप के समय रोपण करने से पौध अच्छी  प्रकार अपनी वृद्धि नहीं कर पाते। रोपण के बाद पौधो को फुहारे की सहायता से 2-3 दिनों तक सुबह-शाम सिचाई करें।  मिर्च में रोपण के लिए उचित दुरी ऋतुओ और किस्मो के अनुसार अलग-अलग होती हैं। साधरण तौर पर मिर्च की रोपाई पंक्ति से पंक्ति 45-75 सेंटीमीटर व पौध से पौध 30-45 सेंटीमीटर रखना चाहियें।  

खाद एवं उर्वरक :- मिर्च की पैदावार प्रयुक्त खाद एवं उर्वरको की मात्रा व किस्म पर निर्भर करती हैं। अच्छी उपज क लिए 25-30 टन प्रति हेक्टयर सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिलावे तथा तत्व के रूप में 100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-60 किलोग्राम फास्फोरस, 30-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टयर की डर से प्रयोग में लाना चाहियें। नाइट्रोजन की आधी व फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपण से पहले दें तथा शेष नाइट्रोजन को दो भागों में बाटकर रोपण से 25 व 45 दिनों बाद खड़ी फसल में डालें।

नोट:- खाद एवं उर्वरको की मात्रा के निर्धारण से पूर्व मृदा परिछण अवश्य कराएं। 

अंतः शस्य क्रियांए :- सिचाई करने के बाद मिर्च के खेत में अनेकों प्रकार के खरपतवार उग आतें हैं।  अतः समय पर निकाई करतें रहना चाहियें।  भूमि में हवा का आवागमन सुचारुरूप से होता रहे इसके लिए सिचाई के बाद हल्की गुड़ाई करके पौधे की जड़ो के पास मिटटी चढ़ा दें। पेंडीमेथिलीन 3.3 लीटर 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर रोपण से पूर्व खेत में प्रयोग करने से खरपतवार नहीं उगतें हैं व अच्छी उपज प्राप्त होती हैं।   

तुड़ाई :- हरी मिर्च के लिए तुड़ाई फल लगने के 15-20 दिन बाद कर सकतें हैं परन्तु यदि सुखी लाल मिर्च के लिए तुड़ाई करनी हो तो एक या दो बार हरी मिर्च की तुड़ाई करके मिर्च पौध पर ही पकने के लिए छोड़ दी जाती हैं। इससे फूल बहुलता से आतें हैं और पैदावार भी ज़्यादा मिलती हैं। एक तुड़ाई से दूसरे तुड़ाई का अंतराल 15-20 दिन रखतें हैं।  

प्रमुख किट व रोग 
थ्रिप्स :- इस किट के शिशु तथा वयस्क दोनों पत्तिओं से रस चूसकर नुक्सान पहुचातें हैं।  वयस्क किट का पंख कटी-फ़टी होती हैं।  प्रोण किट 1 मिलीमीटर से कम लम्बा होता हैं।  यह कोमल हल्के पीले भूरे रंग का होता हैं।  एक मादा 50-60 अण्डे देती हैं।  इसके प्रकोप से पत्तियां सुख जाती हैं जिसका प्रतिकूल असर फसल की पैदावार पर होती हैं।


नियंत्रण :- मिर्च के बीज को इमिडाक्लोरपिट (70 WS) 2.5 GM/KG बीज की डर  से उपचारित कर पौधशाला में बुआई करें।  मुख्य  खेत में   इमिडाक्लोरपिट 200 SL का 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल के साथ छिड़काव करें। फल लगने से 30 दिन पहले इमिडाक्लोरपिट का प्रयोग बंदकर देना चाहियें। 

पीली माइट :- यह पीले रंग की छोटी माईट हैं इसकी पीठ पर सफेद धारियां होती हैं।  यह आकार में इतनी छोटी होती हैं जो आसानी से दिखाई नहीं देतें हैं।  इसका प्रकोप होने पर पर्ण कुंचन रोग की तरह पत्तो में सिकुड़ाव आ जाता हैं।  इसके अत्यधिक प्रकोप होने पर पौधो की बढ़वार एकदम से रुक जाती है, और फुलने-फलने की छमता प्रायः समाप्त हो जाती हैं।  

नियंत्रण :- दायकोफाल 18.5 EC का 2.5 मिलीलीटर को प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर या सल्फर धूल (10  प्रतिशत धूल) का 20-25 KG/Hect की डर  से  15 दिन के अंतराल पर बुरकाव प्रभावकारी पाया गया हैं।  

शीर्षमरण रोग (डाईबैक) एवं फल सड़न :- इस रोग में पौधो का ऊपरी भाग सुखना प्रारम्भ होता हैं और नीचे तक सूखता जाता हैं।  प्रारम्भिक अवस्था में यह टहनियॉ गीली होती है और उस पर रोयेदार कवक दिखयी देती हैं।  रोगग्रसित पौधो के फल सड़ने लगतें हैं।  लाल फलों पर इस रोग का प्रकोप अधिक होता हैं।  

नियंत्रण :- इससे बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 2.5 GM दवा प्रति KG बीज की दर से उपचारित करके बोयें। छतिग्रस्त टहनियों को सुबह के समय कुछ नीचे  से काट कर इकठ्ठा कर लें एवं जला दें।    

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15/4/20, 2:37 pm ×

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