Lemon Grass
नींबू घास की खेती
इसकी खेती केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य-प्रदेश, आसाम, पश्चिम-बंगाल, उत्तर-प्रदेश एवं महाराष्ट्र में की जाती हैं। विभिन्न औषधियो निर्माण में, उच्च कोटि के इत्र निर्माण, विभिन्न सौंदर्य प्रसाधनो में, साबुन निर्माण एवं सौंदर्य सामग्रियों, नीबू की खुशबु, नीबू की ताजगी वाले साबुनों का मुख्य घटक सिट्राल ही होता हैं। इसकी मांग देश तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही बढ़ गयी हैं। इसकी नीबू घास की खेती अधिक लाभकारी हो गयी हैं।
Soil (भूमि):- लगभग सभी प्रकार की भूमियों में इसकी खेती की जा सकती हैं; किन्तु दोमट उपजाऊ मिटटी में यह अधिक अच्छी होती हैं। इसके अतिरिक्त यह कम वर्षा वाले लेटराइट मिट्टियों कम उपजाऊ तथा बारानी क्षेत्रों में भी उपजायी जा सकती हैं, किन्तु यदि परिस्थितियां अधिक अनुकूल होतो बारानी क्षेत्रों में इसी उपज की मात्रा में बढ़ोत्री हो सकती हैं।
उपजाउ भूमि में वर्ष भर इसकी पांच (5) फसले ली जा सकती हैं। जबकि कम उपजाउ भूमि तथा बारानी क्षेत्रों में 2-3 फलसे ही ली जा सकती हैं। रेतीली तथा लाल मिट्टियों में इसकी खेती करने के लिए पर्याप्त उर्वरको की आवश्यकता होती हैं।
ऊष्ण तथा समसीतोष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती हैं ; फिर भी लेमन ग्रास की खेती के लिए ऊष्ण तथा आद्र, पर्याप्त धुप, वर्ष भर में 200-250 सेंटीमीटर वर्षा या सिंचाई के पर्याप्त साधन होने चाहिए।
Field Preparation (खेत की तैयारी):- बुआई से पूर्व खेत की हल या हैरो से क्राश जुताई करनी चाहिए, अंतिम जुताई के समय 5 प्रतिशत B.H.C. पाउडर 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर, दीमक के प्रकोप सेबचने के लिए खेत में मिला देना चाहिए। इसके पश्चात खेत को समतल कर दिया जाना चाहिए।
Manure and Fertilizer (खाद एवं उर्वरक):- गोबर की पूर्णतः सड़ी हुई खाद का प्रयोग खेत तैयार करते समय देना चाहिए। गोबर खाद की मात्रा प्रति एकड़ 15 टन खेत तैयार करतें समय डाल दे, रासायनिक खाद प्रति एकड़ 60 kg N, 16 Kg Ph. तथा 16 kg पोटाश खेत तैयार करतें समय N का 1/3 हिस्सा, जबकि फास्फोरस व पोटाश सम्पूर्ण दाल दिया जाना चाहिए। नाइट्रोजन का शेष भाग फसल की प्रत्येक कटाई के पश्चात् डाल देना चाहिए।
Sowing / Transplanting (बुआई/रोपाई):- नीबू घास की बुआई बीज तथा स्लिप से की जाती हैं। बीज द्वारा इसकी बुआई बीजो से नर्सरी तैयार की जाती हैं। इन तैयार पौधो का प्रत्यारोपण खेत में किया जाता हैं। स्लिप द्वारा बुआई के लिए लेमन ग्रास के पूर्ण तथा विकसित पुराने पौधो को उखाड़कर उनके साथ की पुराणी जड़ो तथा पत्तियों को काट लिया जाता हैं इन खूटों में से प्रत्येक स्लिप को अलग कर लिया जाता हैं। एक एकड़ के क्षेत्र में ऐसे 25000 स्लिप की आवश्य्कता होती हैं। प्रत्येक ऐसे स्लिप की कीमत 50 पैसे से 2 रूपये होती हैं। इन दोनों पद्धतियों में स्लिप पद्धति सर्वोत्तम मानी जाती हैं।
रोपाई का समय फरवरी-मार्च तथा जुलाई-अगस्त होता हैं किन्तु फरवरी-मार्च में लगायी गई फसल 20 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती हैं। खेत में बुआई करते समय छोटी कुदाल या खुरपी से 5-8 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे करके स्लिप की रोपाई कर देनी चाहिए।
Irrigation (सिंचाई):- रोपाई के पश्चात खेत में सिचाई करना चाहिए। रोपाई करते समय पौधे से पौधा तथा कतार से कतार के बीच की दूरी 60-30 या 60-45 सेंटीमीटर उचित मानी गई हैं। रोपाई के पश्चात भूमि गीली रहनी चाहिए, गर्मियों में 10 दिनों के अंतराल पर तथा सर्दियों के समय 15 दिनों के अंतराल से सिंचाई करनी चाहिए।
Weeding Hoeing (निराई/गुड़ाई):- इसकी फसल में ज्यादा खरपतवार पहली बार होती हैं , जबकि बाद की कटाइयों में यह कम हो जाती हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ 250 ग्राम आक्सिफ्लोरोफेन बुआई के पूर्व खेतों में मिला देना चाहिए। हाथ से ही गुड़ाई प्रत्येक कटाई के पश्चात करनी लाभकारी होती हैं।
Crop Protection (फसल सुरक्षा):- वैसे तो यह फसल किट-पतंगों से सुरक्षित होती है , फिर भी कुछ किट-पतंगों से रोग फैलते हैं, इसलिए फसल सुरक्षा नियंत्रण आवश्यक हैं।
Shoot Fly (शूट फ्लाई):- इसमें लगने वाली शूट फ्लाई मक्खी की सूडियां तने के भीतर घुसकर उसे काटकर खा जाती हैं। इसका प्रकोप प्रायः 5-6 पत्तियां आने पर देखा गया हैं इसके नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 EC का 100 -150 मिलीलीटर या फोरेट-10 G का 4-5 किलोग्राम या कार्बोफ्यूरॉन-3G का 4-5 किलोग्राम/एकड़ का प्रयोग करें।
Termite (दीमक):- दीमक के लिए बुआई के पूर्व खेत में B.H.C. Powder का प्रायोग करना चाहिए या नीम की खली को पीसकर प्रयोग करने से किया जा सकता हैं।
White Fly (सफेद मक्खी):- इसका प्रकोप फरवरी-मई तक देखा गया हैं। यह किट पत्तो की निचली सतह पर चिपके रहकर पत्तो का रस चूसते हैं। इनके नियंत्रण के लिए फास्फोमिडान या डाइमेथोएट 200-250 मिलीलीटर तैलीय कीटनाशक जल में मिलाकर प्रति एकड़ प्रयोग किया जाता हैं।
Harvesting (कटाई):- फसल रोपाई के बाद पांच वर्ष तक प्रत्येक 60-70 दिनों के अंतराल पर कटाई की जाती हैं। यदि भूमि अधिक उपजाऊ न हो एवं पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हो तो वर्ष में ज़्यादा से ज़्यादा तीन कटाई ही लेनी चाहिए। पौधे की कटाई भूमि से 10-15 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए। फसल से प्राप्त होने वाले तेल की मात्रा का आधार जलवायु, भूमि की उर्वरता, खेती की देख-रेख, प्रजाति, कटाई का समय, पर रहता हैं।
Yield (उपज):- प्रति एकड़ वर्ष की चार (4) कटाईओं लगभग 100 kg तेल प्राप्त किया जा सकता हैं जबकी आने वाले वर्षो में यह मात्रा बढ़ती जाती हैं। एक बार फसल लगने पर आने वाले व्यय में प्रतिवर्ष पाँच वर्ष तक कमी होती हैं ; जबकि आय बढ़ती हैं , इसलिए लेमन ग्रास की खेती बहुत ही लाभकारी होती हैं। प्रतिवर्ष प्रति एकड़ 100 किलोग्राम का बिक्री मूल्य 550/- रु/kg तो प्रथम वर्ष में तेल से प्राप्त होने वाली कुल आय 55000/- रूपये तथा इसके अरिरिक्त किसान को प्लांटिग मेटेरियल (स्लिप) से भी आय हो सकती हैं।
सुरस एवं सुगंध विकास संस्थान औधोगिक क्षेत्र मकरकन्द नगर, कन्नौज (उत्तर-प्रदेश)
केन्द्रीय औषधीय एवं सुगंध पौध संस्थान, सीमैप कुकरैल पिकनिक स्पॉट के पास लखनऊ-226015
क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला, केनाल रोड, जम्मूतवी, जम्मू
उपरोक्त सभी में आसवन विधि से तेल निकाला जाता हैं। वाष्प आसवन या जल आसवन में फसल को काटकर खेत में छायादार स्थान पर रखा जाता हैं। लेमन ग्रास को छोटे-छोटे टुकड़ो में काटकर आसवन हेतु आसवन टैंक में डालकर आसवन से तेल निकला जाता हैं।
NOTE:- कम उपजाऊ, बंज़र और कम पानी वाले शुष्क स्थानो के लिए ये एक लाभदायक फसल हैं।
इसलिए आइए लेमन ग्रास उगाए , आर्थिक लाभ कमाए
जय जवान जय किसान जय विज्ञान
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