PROCESS OF SOIL EROSION
मृदा क्षरण की प्रक्रियां
प्रकृति ने भूमि को उर्वरा बनाये रखने के लिए आवश्कतानुसार वर्षा के द्वारा अलग-अलग परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों को पैदा किया। इस प्रकार से उगी हुई एकवर्षीय, द्विवर्षीय अथवा बहुवर्षीय वनस्पति, घासो, झाड़ियों व वृक्षों के रूप में; भूमि को जल और वायु के क्षरण से रोकती हैं और इसको अधिक बनाती रहती हैं।
1:- Natural, Normal or Geological Soil Erosion
प्राकृतिक, सामान्य या भूवैज्ञानिय मृदा क्षरण
वर्षा का जो पानी भूमि पर गिरता हैं, उसकी कुछ मात्रा भूमि के द्वारा शोसित कर ली जाती हैं व शेष फालतू पानी भूमि के ऊपर बहता हुआ नीचे के धरातल में पहुँचता हैं। जब यह पानी भूमि के ऊपर बहता हैं, तो थोड़ी बहुत मात्रा भूमि की ऊपरी सतह से मिटटी की मात्रा अपने साथ बहाकर ले जाता हैं। इस प्रकार मिटटी की ये जो मात्रा जल द्वारा बहाकर नस्ट की जाती हैं, उसे हम "प्राकृतिक मृदा क्षरण " कहतें हैं।
2:- Man-Made or Accelerated Soil Erosion
त्वरित अथवा मानवीय मृदा क्षरण
जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ मनुष्यो की आवश्कताओ में बढ़ोतरी हुई हैं। अपनी अवाश्य्कताओ की पूर्ति के लिए मनुष्यो ने वनो व जंगलों को काटकर अथवा आग लगाकर साफ़ किया। वनस्पतिहीन भूमि पर मानव ने खेती; विभिन्न उद्योग व सड़को का निर्माण किया। इस प्रकार मानव ने भूमि को वनस्पतिहीन बनाया व इसका खेती से कुप्रबंध किया जिसके द्वारा भूमि का क्षरण होता आ रहा हैं। इस तरह के भूमि में क्षरण को जो मानव द्वारा किया जाता हैं "मानवीय मृदा क्षरण" कहतें हैं।
नोट:- स्थानांतरित खेती मृदा सँरक्षण में सदैव हानिकारक हैं। जहां तक सम्भव हो वनो को नस्ट करके खेती का प्रारम्भ नहीं करना चाहिए। प्राकृतिक वनस्पति के नस्ट होने से मृदा का क्षरण बढ़ता हैं।
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1 comments:
Click here for commentsअति सुंदर
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