काऊ पैट पिट
Cow Pat Pitt
जमींन में 90 सेंटीमीटर लम्बें 60 सेंटीमीटर चौड़े तथा 45 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे में, गाय के गोबर तथा बॉयोडायनेमिक प्रिपरेशन की सहायता से तैयार की जाने वाली खाद को सी पी पी या काऊ पैट पिट कहतें हैं।
काऊ पैट पिट से तैयार खाद के प्रयोग से पौधों की वृद्धि व विकास अधिक होता हैं, क्योंकि पौधों की उपापचय संबन्धी क्रियाएँ बढ़ जाती हैं। यह खाद भूमि में पाए जाने वाले लाभदायक सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता बड़ा देती हैं। साथ ही खड़ी फसल पर छिड़काव करने पर कुछ बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देती हैं, जिसमें बीमारियों की रोकथाम में भी सहायता मिलती हैं।
इस खाद में लगभग 1.25 से 1.40 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.3 से 0.5 प्रतिशत फास्फोरस तथा 0.4 से 0.6 प्रतिशत पोटाश (कृषि विविधीकरण परियोजना, उत्तर-प्रदेश द्धारा कराये गए परीक्षण के आधार पर) पाया जाता हैं।
आवश्यक सामग्री
- गाय का गोबर 50 से 60 किलोग्राम।
- अण्डे का छिल्का 250 ग्राम।
- बायो डायनेमिक प्रिपरेशन 502 से 507 की एक-एक ग्राम मात्रा।
- 100 ग्राम गुड़ का घोल।
- बेसाल्ट पाउडर या बोर स्वायल, 500 ग्राम से 1.0 किलोग्राम।

बनाने की विधि
- भूमि में 90 सेंटीमीटर लम्बा, 60 सेंटीमीटर चौड़ा तथा 45 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा बनाये।
- गड्ढे की भीतरी दीवारों पर ईट की सहायता से दीवार बनाये।
- अंदर की दीवार तथा फर्श को गाय के गोबर से लीप दें।
- अण्डे का छिलका बारीकी पीसकर बेसाल्ट के साथ गोबर में मिलाकर मिश्रण बना लें।
- तीन चौथाई गड्ढा तैयार मिश्रण (गाय का गोबर + अण्डे का बारीकी छिलका + बेसाल्ट) में भर दें।
- अब प्रिपरेशन 507 को लगभग आधा लीटर पानी से गुड़ के साथ अच्छी तरह घोलकर 30 मिनट तक घड़ी की विपरीत तथा सापेक्ष दिशा में घुमाए।
- प्रिपरेशन 502 से 506 को गोबर में अंगूठे से छेद करके चारो कोनों और बीच में दबा दे।
- 507 के तैयार घोल को पूरे गोबर पर छिड़क दें।
- जुट के बोरे से गड्ढे को ढक दें। वर्षा से बचाने के लिए ऊपर से छप्पर बना दे।
- एक माह बाद किसी लकड़ी या पंजे से ऊपर की गोबर की सतह को चला दें। यदि नमी कम हो तो पानी का छिड़काव करें।
- 3 महीने बाद जब बदबू आना बंद हो जाए तो समझ जाना चाहिए की खाद तैयार हो गयी है।
- उपरोक्त आकार गड्ढे से लगभग 20 किलोग्राम खाद तैयार होती हैं।

Recipe
- Build a pit 90 cm long, 60 cm wide and 45 cm deep in the ground.
- On the inner walls of the pit, make walls with bricks.
- Lap the inside wall and floor with cow dung.
- Make a mixture by grinding the skin of the eggs closely and mixing it with basalt in cow dung.
- Fill three fourth pit in the prepared mixture (cow dung + egg shell peel + basalt).
- Now dissolve Preparation 507 with jaggery with about half a liter of water and rotate it clockwise and in the opposite direction for 30 minutes.
- Preparation 502 to 506 with a thumb hole in the dung, press it to the corners and middle.
- Sprinkle the prepared solution of 507 all over the cow dung.
- Cover the pit with the sack. To protect from rain, make a thatch above.
- After one month, run the cow dung surface above any wood or claw. If moisture is low then spray water.
- When the smell stops after 3 months, it should be understood that the manure is ready.
- About 20 kg of manure is prepared from the above size pit.

भण्डारण
- तैयार खाद को मिटटी के बर्तन (घड़े) में भरकर छायादार स्थान में भंडारित करें।
- बर्तन के मुँह पर पतला कपडा बांध दें।
- नमी कम होने पर पानी के छीटे मारकर नमी बनाए रखे।
Storage
- Fill the prepared manure in a clay pot and store it in a shady place.
- Tie a thin cloth to the mouth of the vessel.
- When the humidity is low, maintain the moisture by splashing water.
प्रयोग की मात्रा
- 500 ग्राम से 1 किलोग्राम प्रति एकड़।
Quantity Used
- 500 grams to 1 kg per acre.
प्रयोग की विधि
- 500 किलोग्राम से 1 किलोग्राम खाद को 45 लीटर शुद्ध पानी में घड़ीं की दिशा एवं विपरीत दिशा में 30 मिनट तक डण्डे की सहायता से मिलाये और अंतिम जुताई के समय, खेत की बुआई या रोपाई से पूर्व, भूमि में कूंचे या ब्रश की सहायता से छिड़काव करें।
- 40 लीटर पानी में एक किलोग्राम काऊ पैट पिट मिलाकर ट्री पेस्ट के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैं।
- इसका प्रयोग ग्राफ्टिंग, रूटिंग, रूट डिपिंग आदि में किया जाता हैं।
- गमले में मिटटी के साथ भरा जा सकता हैं।

Method of Use
- Mix 500 kg to 1 kg of manure in 45 liters of pure water clockwise and counterclockwise for 30 minutes with the help of a stick and spraying with the help of a brush or brush in the ground at the time of final plowing, before sowing or planting the field. Do it
- One kg of cow pits mixed with 40 liters of water can be used as tree paste.
- It is used in grafting, routing, route dipping etc.
- Can be filled with pot in the pot.
भारत में कृषि का इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना हैं। आधुनिक कृषि का युग लगभग 100 वर्ष का हैं और हरित क्रांति को अभी 35-36 वर्ष हैं। प्रकृति एवं पर्यावरण का संतुलन बनाये रखते हुए प्राचीन कृषि में जल, वायु, पशु व मानव स्वास्थ्य में कोई विपरीत प्रभाव दृषिगोचर नहीं था। हरित क्रांति के फलस्वरूप रासायनिक खादों, रोग व कीटनाशकों तथा फफूदीनाशकों तथा खरपतवारनाशी रसायनो का असंतुलित प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति में ह्रास के फलस्वरूप फल, सब्जी, अनाज व दालों की गुणवत्ता तथा स्वाद में कमी हुई हैं। भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए कार्बनिक तथा जैविक खादों का प्रयोग करके ह्यूमस की मात्रा बढ़ाना लाभदायक एवं उपयोगी हैं। रोग तथा कीटाणुओं से मुक्ति पाने के लिए जैविक रोग व कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना चाहिए। भूमि की उर्वरा शक्ति एवं स्वास्थ्य के अनुसार ही भूमि से अनाज, डालें, सब्जी, फल इत्यादि, जिनमें प्रचुर मात्रा में सूक्ष्म तत्व तथा विटामिन व एन्जाइम विधमान रहतें हैं, प्राप्त हो सकतें हैं। स्वस्थ्य शरीर एवं स्वस्थ्य मन तथा जैसा अन्न, वैसा मन की कल्पना साकार होगी।
यदि किसान मित्र कूड़े-कचरे तथा गोबर की खाद मिलाकर पारस्परिक तरिके से कम्पोस्ट बना कर प्रयोग करते आ रहे हैं, लेकिन इस तरह से बनाई जाने वाली खाद से बहुत से लाभकारी तत्व, हवा व पानी के साथ विलीन होकर बेकार चले जाते हैं। अतः गोबर, कृषि क्षेत्र से प्राप्त बेकार पदार्थो जैसे- पत्तियां आदि का प्रयोग करके वैज्ञानिक ढंग से खादों को बनाने तथा उनका प्रयोग करने की विधियां इस लेख में प्रस्तुत की जा रही हैं। किसान मित्र इन उपरोक्त विधियों को अपनाकर काम लागत में लाभकारी खेती कर सकतें हैं।
If farmer friends have been experimenting with compost in a reciprocal way by mixing garbage and waste and composting of cow dung, but the manure made in this way makes many beneficial elements, dissolved with air and water, go waste. Therefore, methods of making and using fertilizers in a scientific manner using waste materials such as dung, leaves etc., are being presented in this article. By adopting these above methods Kisan Mitra can do profitable farming at a cost of work.
लगातार रासायनिक खादों, कीटनाशकों के प्रयोग से निश्चित तौर पर पैदावार बढ़ीं हैं, लेंकिन धीरे-धीरे इनके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं, जैसे भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी, भूमि की संरचना का खराब होना, कीटों द्धारा फसलों को अधिक हानि, उत्पादित अन्न, फल तथा सब्जियों के स्वाद और सुगन्ध में कमी तथा मनुष्यों और पशुओं में भयंकर रोग तथा बीमारियां अदि इनमे प्रमुख हैं।
उपरोक्त दुष्परिणामों को देखते हुए आज आवश्यकता इस बात की महसूस की गयी की अपने पुराने तरीकों को पुनः नए ढंग से इस प्रकार अपनाया जाए की पैदावार में भी कमी न हो और रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग में भी कमी की जा सके। आधुनिक विधि से विभिन्न प्रकार की जैविक खादों के बनाने की विधियां निम्न प्रकार हैं।
In view of the above side effects, today it was felt that the old methods should be re-adopted in a new way in such a way that there is no reduction in the yield and also the use of chemical fertilizers and pesticides can be reduced. Following are the methods of making various types of organic fertilizers by modern method.
- वर्मी-कम्पोस्टिंग
- वर्मी-वाश विधि
- नादेप कम्पोस्टिं
- जीवाणु खाद प्रायोगिक विधियां
- बायोडायनेमिक विधियां
लेखक :- ए. पी. सिंह M.Sc. agronomy (www.agriculturebaba.com)
सहायक :- लिनी श्रीवास्तव M.Sc.(Agronomy)
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3 comments
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