वर्ण व्यवस्था
वर्ण:- वर्ण उस मुल ध्वनि को कहतें हैं जिसका खण्डन न हो। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि हैं, इस ध्वनि को वर्ण कहतें हैं।
वर्णों के भेद:- यह मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।
१:- स्वर वर्ण
२:- व्यञ्जन वर्ण
१:- स्वर्ण वर्ण:- उन वर्णो को कहतें हैं जिसका उच्चारण बिना अवरोध या बिना विघटन के होता हैं। स्वर वर्ण स्वतंत्र होते हैं, इनकी संख्या 11 होती हैं।
स्वरों वर्णों का वर्गीकरण
ह्रस्व स्वर्ण:- जिनके उच्चारण में कम से कम समय लगता हैं तथा जिनकी उत्पत्ति दूसरे स्वरों से नहीं होती हैं।
जैसे :- अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर्ण:- किसी मूल या ह्रस्व को उसी के साथ मिलाने से जो स्वर बनता हैं उसे दीर्घ स्वर कहतें हैं।
जैसे :- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ,
अ+अ = आ, इ+इ = ई, उ+उ = ऊ
👉 :- ऐसे स्वर जो दो भिन्न स्वरों के मिलने से बनतें हैं।अ+इ = ए
अ+ए = ऐ
अ+उ = ओ
अ+ओ = औ
प्लुप्त स्वर (त्रिमात्रिक स्वर) :- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में तिगुना का समय लगें प्लुप्त या त्रिमात्रिक स्वर कहते हैं।
जैसे:- ओ३म = ॐ (उद्दात और अनुदात)
अनुनासिक स्वर (ँ) :- जिन स्वरों के उच्चारण में हवा मुँह के साथ-साथ नाक से भी निकलती हो, दूसरे शब्दों में ऐसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता हैं और उच्चारण में लघुता होती हैं।
जैसे:- गाँव, दाँत, चाँद, आँगन
👉 :- जहाँ अनुनासिक (ँ) शब्द होंगें वहाँ तत्स्म शब्द नहीं होगी।
अनुस्वार स्वर (ं) :- यह स्वर के बाद आने वाला व्यञ्जन हैं जिसकी ध्वनि नाक से निकलती हैं।
जैसे:- चंद, दंत, अंश, अंगद, कंकण
👉 :- जहाँ अनुस्वार के वर्ण होंगे वहाँ सत प्रतिशत तत्स्म के वर्ण ही होतें हैं।विसर्ग स्वर (:) :- अनुस्वार की तरह विसर्ग भी स्वर के बाद आता हैं यह व्यञ्जन हैं और इसका उच्चारण (ह) की तरह होता हैं।
जैसे:- अन्तः, स्वतः, दुःख, इत्यादि।
👉 :- जिस शब्द में विसर्ग लगा होगा वहां 100 % तत्स्म ही होगा।
अयोगवाह:- योग होने पर भी जो साथ रहे उसे अयोगवाह कहतें हैं।
जैसे:- (अं) अनुस्वार
(अ:) विसर्ग
👉 :- अनुस्वार और विसर्ग शब्द हमेशा व्यञ्जन के साथ प्रयोग होता हैं।दूसरे शब्दों में :- अनुस्वार और विसर्ग का प्रयोग स्वर के साथ नहीं होता हैं।
👉 :- अयोगवाह न स्वर हैं और न ही व्यञ्जन हैं। (लेकिन अनुस्वार और विसर्ग को व्यञ्जन मान लिया गया हैं।)निरुनासिक या मौखिक स्वर:- केवल मुँह से बोले जाने वाले स्वर वर्णों को निरुनासिक स्वर कहतें हैं।
दूसरे शब्दों में:- एक सार्थक शब्द के साथ जब निरर्थक शब्द का प्रयोग होता हैं तो उसे निरुनासिक कहतें हैं।
जैसे:- पूर्व पद उत्तर पद
इधर उधर
पानी वानी
लोटा ओटा
👉 १:- निरुनासिक के सारे शब्द देशज होतें हैं।
२:- पूर्व पद के साथ जब उत्तर पद आता हैं तो उसे निरुनासिक की संज्ञा प्रदान की जाती हैं।
लेखक :- अंशिका सिंह पटेल (B.A., B.T.C.) (www.agriculturebaba.com)
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1 comments:
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