दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम 1961
उद्देश्य :- दहेज का लेना और देना रोकने के लिए इस अधिनियम को गणतन्त्रता के 12 वे वर्ष अधिनियमित किया गया हैं।
धारा 1 के अनुसार
नाम विस्तार और प्रारम्भ :- इस अधिनियम का नाम दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 हैं।
इसका विस्तार J & K (जम्मू एण्ड कश्मीर) को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर हैं।
धारा 2 के अनुसार
दहेज की परिभाषा :- दहेज से कोई ऐसी सम्पति या मूल्यवान वस्तु आती हैं जो विवाह के समय पूर्व या पश्चात् या किसी समय-
(क) विवाह के एक पक्षकार द्धारा विवाह के दूसरे पक्षकार को या
(ख) विवाह की किसी पक्षकार के माता-पिता द्धारा/ किसी अन्य व्यक्ति द्धारा विवाह के किसी भी पक्षकार को या किसी अन्य व्यक्ति को-
उन पक्षकारो के विवाह के संबन्ध में या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करार की गयी हैं की उक्त सम्पत्ति दी जाएगी लेकिन इसके अन्तर्गत मुस्लिम विधि के अन्तर्गत मेहर को नहीं लाया जा सकता हैं।
धारा 3 के अनुसार
दहेज लेने या देने के लिए शास्ति या दण्ड :- जो कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रारम्भ होने पक्ष्चात दहेज़ लेगा या देगा या लेना दुष्प्रेरित करेगा (चढ़ाना/सहायता करना) तो वह कारावास की ऐसी अवधि से जो 5 वर्ष से कम नहीं होगी और जुर्माने से जो 15000/- रू तक का या ऐसे दहेज़ के रकम में मूल्य के बराबर इनमे से जो भी अधिक हो दण्डनीय होगा।
भेद लेना (उपहार) या देना इस अधिनियम के तहत दण्डनीय नहीं हैं। लेकिन भेट में दिए गए वस्तुओ का एक सूची बनायी जाएगी और भेट रूढ़िगत प्रकृति (नियमावली के अनुसार) की होगी या वित्तीय सामर्थय के अन्तर्गत होगी।
धारा 4 के अनुसार
दहेज के माँग के लिए शास्ति या दण्ड :- यदि कोई व्यक्ति वर या वधू के माता-पिता या संरक्षक या अन्य नातेदार से किसी दहेज का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से माँग करेगा तो वह कारावास से जिसकी अवधि 6 माह से कम नहीं होगी किन्तु जो 2 वर्ष तक हो सकती है और जुर्माने से जो की 10000/- रु. तक के दण्ड से दण्डित किया जायेगा।
(क) विज्ञापन पर पाबन्दी:- यदि कोई व्यक्ति अपने पुत्र या पुत्री या नातेदार के विवाह के प्रतिफल स्वरूप विज्ञापन किसी भी माध्यम से अपनी सम्पति/धन /अंश /कारोबार/अन्य हित का प्रस्थापना (प्रपोसल)/ प्रस्ताव करता हैं तो वह ऐसे कारावास से जो 6 महिने से कम नहीं होगी किन्तु 5 वर्ष तक हो सकती हैं और जुर्माना जो की 15000/- रु. तक हो सकता हैं, दण्डनीय होगा।
धारा 5 के अनुसार
दहेज लेन व देन का करार शून्य होगा।
धारा 6 के अनुसार
दहेज का पत्नी या वारिश के फायदे के लिए उपयोग होना।
धारा 7 के अनुसार
अपराध का संज्ञान :-
(ii) इस अधिनियम के तहत संज्ञान (विचारण)
(a) पुलिस रिपोर्ट पर
(b) व्यथित व्यक्ति द्धारा या उसके माता-पिता या नातेदार / मान्यता प्राप्त कल्याण संस्थान/ संघठन के परिवार पर न्यायालय करेगा।
धारा 8 के अनुसार
इस अधिनियम के तहत अपराधों का विचारण संज्ञेय रूप में तथा जमानती और असहनीय (असमझौता नहीं किया जा सकता) होगा।
(क) कुछ मामलो में सबूत का भार :- कोई भी व्यक्ति जो धारा 3 या 4 के अधीन दहेज मांग लेने या देने पर या दुष्प्रेरण करने का अपराधी हैं उसे ही यह साबित करने का भार होगा की उसने इस अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं किया।
(ख) दहेज प्रतिषेध अधिकारी :- राज्य सरकार उतने दहेज प्रतिषेध अधिकारी की नियुक्ति करेगा जितने वह ठीक समझेगा और वह क्षेत्र निर्धारित करेगा जहाँ वह अपने अधिकारी व शक्ति का प्रयोग करेगा।
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