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Method and time of application of fertilizers

 उर्वरकों के प्रयोग की विधि एवं समय

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रासायनिक उर्वरक बुआई से पूर्व, बुवाई/पौधों की रोपाई के समय एवं खड़ी फसल में प्रयोग किये जातें हैं। फास्फोरस जमीन के कणों  के साथ चिपक जाता हैं। जिससे यह चलायमान नहीं हैं।  पोटाश, फास्फोरस से कुछ अधिक चलायमान हैं।  इन्ही गुणों को ध्यान में रखतें हुए फसल की आवश्यकतानुसार उर्वरक के प्रयोग विधि एवं समय निम्न प्रकार हैं :-

(अ) बुवाई से पूर्व:-

(१) बिखेर कर:- कभी-कभी फसल काटने के बाद शीघ्र ही दूसरी फसल की बुवाई की जाती हैं जिससे भूमि की तैयारी के लिए समय बहुत ही कम रह जाता हैं। ऐसी दशा में करीब 8 से 10 किग्रा/हे सीधी यूरिया बिखेर देने से पहले ली गई फसल  की जड़, तना शीघ्र सड़ जाता हैं। यह अति लाभकारी हैं। 

फसल की बुवाई से पूर्व भी श्रमिकों के अभाव में बहुत से किसान यह विधि अपनातें हैं। यह विधि आसान व सुविधाजनक हैं परन्तुं इस तरीके द्धारा दिए गए उर्वरक का समुचित लाभ फसल को नहीं मिलता। 

(२) पंक्तियों में उर्वरक डालना:- इस तरीके में आखिरी जुताई के समय उर्वरक पोरा/चोंगा द्धारा अथवा कुंडों में दिया जाता हैं। बीज से उर्वरक को 2 से 2.5 सेमी नीचे गहरा बो दिया जाता हैं। यह विधि उपयुक्त हैं। 

(३) उर्वरक, बीज साथ मिलाकर:- बीज को उर्वरक के साथ मिलाकर बुवाई करने से काफी हानि होती हैं। इस विधि द्धारा दिए गए उर्वरक से बीज जल जाता हैं। अंकुरण कमजोर होता हैं। खाद बीज के नीचे न रहकर बराबर में रहता हैं और जड़े निकलने पर उर्वरक पौधे को उपलब्ध नहीं हो पाता हैं। 

(४) पोरा द्धारा:- इस विधि से उर्वरक बीज के नीचे उचित गहराई पर कुंडों में डाला जा सकता हैं। जिससे पौधों को समुचित मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त हो जातें हैं।  यह तरीका सस्ता व आसान हैं। 

(५) बीज व उर्वरक मशीन द्धारा:- यह विधि सर्वोत्तम हैं।  इस विधि से भी उर्वरक जमीन में बीज के नीचे रहता हैं। शुरू में यह विधि कुछ महंगी हैं परन्तु बुवाई के समय दो आदमियों की बचत होने, पंक्ति से पंक्ति की दुरी सही रखने व हर जगह बीज/उर्वरक की वांछित मात्रा बोने से पैदावार पर काफी असर पड़ता हैं। 

(ब) खड़ी फसल में:-

(१) बुरकाव द्धारा:- प्रायः गेहूँ, मक्का, जौ, बाजरा आदि जिनमें बुवाई के बाद बुरकाव की आवश्यकता पड़ती हैं, सिंचाई से 48 घण्टें पूर्व या ओट आने पर यूरिया का बुरकाव किया जाता हैं। कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट को भी इसी विधि द्धारा  बुरकाव किया जा सकता हैं। 

(२) मिट्टी में मिलाकर:- खरीफ में यूरिया को सीधा बुरकने के बजाय यदि यूरिया में पांच गुनी नम मिटटी मिलाकर 48 से 72 घण्टें छाया में रखने के उपरांत बुरकाव किया जाय तो पौधों को नाइट्रोजन अधिक मात्रा में उपलब्ध होती हैं। इसी प्रकार धान के खेत में पानी से भरा रहने पर यूरिया को मिटटी में मिलाकर गोली बनाकर उन्हें  जमीन में थोड़ा गहरा गाड़ दिया जाये तो अधिक फायदा होगा। 

बुरकाव के बाद यदि निराई गुड़ाई कर दी जाए तो पौधों को अतिशीघ्र नाइट्रोजन उपयुक्त मात्रा में प्राप्त होगी। बुरकाव हमेशा दोपहर के बाद ही करना चाहिए। 

फसलों के लिए फास्फोरस तत्व की प्रारम्भ में ही ज्यादा आवश्यकता रहती हैं। फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व देना चाहिए। पोटाश तत्व की फसल को पुरे जीवनकाल में आवश्यकता रहती हैं परन्तु इसकी एक बार कमी की पूर्ति करना सम्भव नहीं हैं। अतः पोटाश खाद की भी पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व दे देना चाहिए। नाइट्रोजन तत्व को अंकुरण के समय कम आवश्यकता होती हैं परन्तु फसल के बाद की बढ़ोत्तरी व फल-फूल  आने के समय ज्यादा आवश्यकता होती हैं। अतः नाइट्रोजन का कुछ भाग बुवाई से पूर्व तथा शेष भाग दो या तीन बार में खड़ी फसल में दिया जा सकता हैं। 

बारानी खेती में एन. पी. के. खादों की पूरी मात्रा जमीन के नमी वाले भाग में बुवाई से पहले दे देनी चाहिए। 

उर्वरक की सिफारिश निम्न बातों पर निर्भर करती हैं :-

  1.  कृषक की बात सुने की वह क्या चाहता हैं। 
  2. कृषक कितनी पैदावार चाहता हैं। 
  3. बीज की किस्म जो बोने जा रहा हैं। 
  4. उर्वरक हेतु खर्च करने के लिए कितना पैसा हैं। 
  5. पानी की क्या सुविधा हैं। 
  6. भूमि की उपजाऊ शक्ति कैसी हैं। 
  7. पूर्व में फसल क्या थी। 
  8. उर्वरक देने का तरीका क्या होगा। 
  9. बुवाई का समय क्या होगा।
  10. बीज की मात्रा क्या होगी। 
उर्वरक की मात्रा देतें समय ध्यान जरूर करें:-

  1. तत्वों की पूरी मात्रा दें। 
  2. उर्वरक देने का सही तरीका काम में लें। 
  3. उर्वरक को सही समय पर दें। 
  4. उर्वरक महंगा हैं, सावधानी से इस्तेमाल करें। 
ये न करें:-
  1. बीज, उर्वरक को साथ न मिलाए। 
  2. नाइट्रोजन युक्त खाद को हवा में खुला न छोड़े। 
  3. फास्फेटिक उर्वरक खड़ी फसल में न दें। 
उर्वरकों के प्रकार:-

उर्वरकों का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया गया हैं, जो विस्तार से नीचे दिया गया हैं। 
1:- साधारण उर्वरक:- ये वे उर्वरक हैं जिनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश में सिर्फ एक तत्व होता हैं। इन्हें फिर तीन भागों में विभाजित किया जाता हैं। 
(क) नाइट्रोजन युक्त:- वे उर्वरक जिनमें सिर्फ नाइट्रोजन तत्व उपलब्ध रहता हैं। इस श्रेणी में जैसे- यूरिया (46%), अमोनियम (20%), कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (25 या 26%)। 

(ख) फास्फोरस युक्त:- इस श्रेणी में उर्वरकों  में केवल फास्फोरस होता हैं। जैसे सिंगल सुपर फास्फेट (16%), ट्रिपिल सुपर फास्फेट (46%) ।

(ग) पोटाश युक्त:- इन उर्वरकों में केवल  पोटाश तत्व प्राप्त होता हैं। जैसे - म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (60% पो.) सल्फेट ऑफ़ पोटाश (48% पो.)। 

 2:- संयुक्त उर्वरक:- ऐसे उर्वरकों में दो या दो से अधिक तत्व संयुक्त रूप से होतें हैं। जैसे - डाई अमोनियम फास्फेट (18:46), इफ्को एन. पी. के. (12:32:16), (10:26:26) तथा (20:20:20)

3:- मिश्रित उर्वरक:- दो या दो से अधिक भौतिक रूप से मिलाए गए उर्वरक को साधारण मिश्रित उर्वरक कहतें हैं। जैसे - यूरिया तथा सुपर फास्फेट को हाथ से मिश्रित करना। 

इफ्को की खादें:-

इफ्को अपने संयंत्रों में एन. पी. के., डी. ए. पी. और यूरिया बनाता हैं जिसमें पौधों के निम्न मुख्य पोषक तत्व होते हैं। 

उर्वरकों का विवरण

इफ्को उर्वरकों की विशेषताएँ
  • दानेदार हैं। 
  • पोषक तत्व अधिक मात्रा में हैं और हर दाने में तीनों आवश्यक तत्व हैं। 
  • नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की मात्रा उचित अनुपात में हैं। 
  • उच्च विश्लेषित। 
  • पानी में अत्यधिक घुलनशील।  
  • नाइट्रोजन, अमोनिकल रूप में हैं। 
  • किसानों की अपनी सहकारी संस्था के कारखाने द्धारा निर्मित हैं। 
  • नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का अनुपात वैज्ञानिक अनुपात से रखा गया हैं। 
  • केवल सहकारी समितियों, इफ्को किसान सेवा केंद्रों, गन्ना समितियों, यु.पी. एग्रो, पी.सी.ऍफ़. व आई.ऍफ़.डी.सी. के बिक्री केंद्रों के माध्यम से वितरित होता हैं। 
  • पालीथीन युक्त, मशीन द्धारा सिले हुए 50 किग्रा. के बोर में उपलब्ध हैं। 
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लेखक :- ए. पी. सिंह M.Sc. agronomy (www.agriculturebaba.com)  
सहायक :- लिनी श्रीवास्तव  M.Sc.(Agronomy) 


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