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KABUTO Paraquat Dichloride 24% SL BY IFFCO-MC

 KABUTO (काबुटो)

(पैराक्वाट डाइक्लोराइट 24% एस. एल.)


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क़ाबूटो खर-पतवार नाशकों के बाद पायरलडाइल समूह से संबंधित हैं। 

काबुटो कई प्रकार के सकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का भी नियंत्रण करता हैं। यह बहुवर्षीय खरपतवारों का भी नियंत्रण करता हैं। 

काबुटो प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को अवरुद्ध कर देता हैं और खरपतवारों की कोशिका भित्ति को फाड़ देता हैं जिसके फलस्वरूप पानी सुखाकर उनको मार देता हैं। 

काबुटो का प्रयोग कई प्रकार की फसलों एवं बिना फसल वाले क्षेत्रों में खरपतवार नियंत्रण हेतु किया जाता हैं। 

काबुटो खरपतवार की पत्तियों एवं अन्य भागों के सम्पर्क में आतें ही निष्क्रिय हो जातें हैं। 

काबुटो का प्रयोग खरपतवारों की किसी भी अवस्था में किया जा सकता हैं। लेकिन यह छिड़काव के दौरान फसल के सम्पर्क में नहीं आना चाहिए यह ग्लाइफोसेट के प्रति प्रतिरोधी खरपतवारों का भी सफल नियंत्रण करता हैं। 

काबुटो का प्रयोग कपास की फसल में पत्ती गिराने के लिए भी किया जाता हैं।  जिससे उसकी रेशे की गुणवत्ता बढ़ती हैं तथा मध्य भारत में दूसरी उपज लेने की संभावना बढ़ जाती हैं। 

काबुटो का प्रयोग जंगली जमीन, रेलवे की पटरी, हवाई अड्डे, डिफेन्स क्षेत्र तथा पानी के नालों में खरपतवार के रोकथाम के लिए किया जाता हैं। 

काबुटो एक शक्तिशाली सम्पर्किय खरपतवारनाशक हैं। इसलिए इसका एक बार छिड़काव बहुत जरूरी हैं तथा पत्तियों पर धूल के कण नहीं होने चाहिए और इसका प्रयोग बारिश होने के बाद होने पर बेहतर परिणाम मिलते हैं।  

धान:- बुआई/रोपाई से पहले खड़े खरपतवारों की रोकथाम के लिए

खरपतवारों के नाम:- सांवा घास, धान का मोथा, कनकौआ (बोकना), महकउआ, पान पत्ता, पैरा घास, मोलूगो आदि।  


मात्रा/ एकड़:- 500-1400 मि.ली. 100 लीटर पानी में 120 से 140 दिन के अन्तराल पर प्रयोग करें।

इसे देहाती भाषा में "झटपट" के नाम से भी जानतें हैं। यह 24 घंटे के भीतर ही इसका असर दिखने लगता हैं। 

क़ाबूटो एक गैर-चुनिंदा खरपतवारनाशक हैं जो की आलू, धान, मक्का, कपास, गेहूँ, अंगूर की फसल में सालाना घासों और चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवारों की व्यापक रेंज तथा बहुवर्षीय खरपतवारों के ऊपरी कोमल हिस्सों की बढ़वार रोकता हैं। 

क़ाबूटों का पत्तियों तथा पौधों के दूसरे हिस्सों के साथ सम्पर्क होने पर यह बहुत तेजी से असर करता हैं तथा मिटटी से सम्पर्क होने पर बेअसर हो जाता हैं। 

क़ाबूटों अपने खास असर के कारण, उन गिने-चुने विकल्पों में से एक हैं जिसका उन खरपतवारों से बचाव तथा नियंत्रण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता हैं जो आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले गैर-चुनिंदा खरपतवारनाशकों के  लिए प्रतिरोधकता रखतें हैं। 

पैकिंग:- 250 मि.ली., 500 मि.ली., 1 लीटर, 5 लीटर 

प्रयोगकर्ताओं के लिए सावधानिया:- 

  1. खाद्यासमग्री, खाद्यसामग्री, के  खाली बर्तनों और पशुओं के चारे से दूर रखे।  
  2. मुँह, आँखों, त्वचा को सम्पर्क से बचाये। 
  3. छिड़काव  वाष्प को साँस द्धारा अंदर जाने से बचाए। 
  4. हवा की दिशा में छिड़काव करें। 
  5. छिड़काव के बाद दूषित कपड़ों को अच्छी तरह से धोए। 
  6. छिड़काव के समय धूम्रपान, खाना-पीना,  और कुछ चबाना नहीं चाहिए 
चेतावनी:- फफूंदनाशक से काम करतें समय पूर्ण सुरक्षात्मक कपडे जैसे पूरी बाजू की कमीज व लम्बी पेंट, जुते तथा चश्में, मुखौटा, टोप, रसायन रोधी दस्ताने पहनने चाहिए। 

विष के लक्षण:- पसीना, सिरदर्द, आलस्य, खासी, छींक, खुजली, मितली, उल्टी हो सकती हैं। 

प्राथमिक चिकित्सा:- 
  1. यदी निगल जाए तो गले के पीछे गुदगदी करके उलटी कराये यह क्रिया तब तक दोहराये जब तक उलटी द्धारा निकला पदार्थ साफ़ न हो जाए। 
  2. यदि कपड़े और त्वचा पर लग जाए तो कपडे को उतार दे और दूषित त्वचा को काफी मात्रा में साबुन और पानी से धोए। 
  3. यदि आंखे दूषित हो जाए तो आँखों को सैलाइन या पानी से लगभग 10 से 15 मिनट तक धोए। 
  4. यदि साँस द्धारा अंदर गया हो तो रोगी को शुद्ध हवा में ले कर जाए।
विषनाशक:- कोई विशिष्ट विषनाशक नहीं हैं, लक्षणनुसार इलाज करें। 

खाली डब्बों का निपटारा:- 
  1. खाली डिब्बों को तोड़-फोड़ कर आबादी से दूर जमीन में गाड़ दे। 
  2. बची हुई खरपतवार नाशक, साधनों के धोवन का योग्य रीती से निपटारा करें ताकि जिससे पिने का पानी  एवं वातावरण दूषित न हों। 
संग्रहण की शर्तें:-
  1. खरपतवारनाशकों के पैकटों को अलग अलग कमरों अथवा जगहों में खाध पदार्थ  रखे जाने वाले कमरों अथवा जगहों से अलग आलमारियों में टाला चाभी के अंदर रखना चाहिए। 
  2. जिस कमरें अथवा जगह में खरपतवारनाशक का भंडारण करना हो वह अच्छी तरह बना हुआ, सूखा हवादार तथा प्रकाश युक्त व काफी लम्बा-चौड़ा होना चाहिए जिससे खरपतवारनाशक से वातावरण दूषित न होने पाए। 
नोट:- दिए गए उपरोक्त जानकारी में निर्दिष्ट फसलों के अलावा अन्य फसलों पर इस्तेमाल न करें। 


लेखक :- ए. पी. सिंह M.Sc. agronomy (www.agriculturebaba.com)  
सहायक :- लिनी श्रीवास्तव  M.Sc.(Agronomy) 

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