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Advanced Cultivation of Potato

                                     आलू की उन्नत खेती 

भारत में उत्तर प्रदेश आलू  का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में कानपूर, आगरा, लखनऊ, फैज़ाबाद, इलाहबाद, बरेली,  वाराणसी एवं मेरठ मंडलों में आलू की खेती बहुतायत से की जाती हैं। आलू को मुख्य रूप से सब्ज्जी के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। इसके साथ ही हलुआ चिप्स, व पापड़ आदि भी बनाए जाते हैं। 

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आलू संतुलित आहार देने वाली एक महत्वपूर्ण फसल हैं।  इसमें लगभग 20.6 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 2.1 प्रतिशत प्रोटीन 0.3 प्रतिशत वसा  तथा 0.9 प्रतिशत खनिज पदार्थ और साथ ही विटामिन बी 1 व सी भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में आलू का योगदान 2 प्रतिशत हैं। निम्न उन्नत शस्य क्रियाओ को अपनाकर आलू का अधिक उत्पादन ले सकतें हैं:-

भूमि:-

आलू की अच्छी उपज के लिए बलुई या हल्की दोमट भूमि जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश पदार्थ हों, सबसे उपयुक्त होती हैं। बुआई के लिए मिटटी भुरभुरी व पर्याप्त नमीयुक्त होनी चाहिए। हल्की भुरभरी जीवांशयुक्त मिटटी में उचित तापक्रम व वायु संचार होने से कंद का विकास अच्छा होता हैं और खुदाई भी आसान होती हैं, आलू के लिए भूमि का अधिक अम्लीय या क्षारीय होना हानिप्रद होता हैं। इसके लिए  भूमि का पी. एच. मान 6.5 से 7.5 सबसे अच्छा माना जाता हैं। 


प्रजातियाँ :- 

अगेती:- कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी अलंकार, ई. - 3797 

मध्यम:- कुफरी लालिमा, कुफरी बहार, कुफरी ज्योति 

पछेती:- कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा, कुफरी चमत्कार, कुफ़रीबदसाह, पी. जे. - 376, जे. एस.-222, जे. आई. - 5857 

बीज की मात्रा:-

25-30 कुंतल आलू कन्द प्रति हेक्टेयर 

बीजोपचार:-

एगलाल 3 प्रतिशत के 250 ग्राम को 250 लीटर पानी में घोलकर 1 हेक्टेयर के बीज को शोधित किया जाना चाहिए। 

बुआई का समय:-

  • अगेती बुआई:- 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक 
  • समय से बुआई:- (मुख्य फसल) 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक 

दूरी:-

मेड़ से मेड़ की दूरी 45 से 60 से.मी. रखना चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 15-20 से.मी. रखें। 

उर्वरकों का प्रयोग:-

सामन्यतः मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। 10 से 12 टन कम्पोस्ट की खाद प्रति हे. डालना भी आवश्यक हैं। आलू के लिए 150 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 100 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 100 कि. ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती हैं। इसके लिए इफ्कों एन.पी.के. (12:32:16) / (16:16:16) 310 किग्रा तथा यूरिया 245 किग्रा एवं 83 किग्रा म्यूरेट ऑफ़ प्रति हे. प्रयोग करना चाहिए। यदि पोटाश की अधिक आवश्यकता हो तो अलग से म्यूरेट पोटाश देकर पूरा कर लेना चाहिए। यदि एन.पी.के. 16:16:16 का प्रयोग कर रहे हैं तो आप इसके साथ डी.ए.पी. 35 किग्रा प्रति हे. का प्रयोग करना चाहिए। यूरिया की शेष मात्रा को मिटटी चढ़ाते समय 20 से 25 किग्रा  जिंक सल्फेट के साथ प्रति हेक्टेयर बेसल ड्रेसिंग के रूप में देने से पैदावार में विशेष वृद्धि होती हैं। 

सिंचाई:-

पहली सिंचाई बुआई के 15 से 18 दिन बाद करना चाहिए, इस बात का ध्यान रहे की मेड़ आधे से अधिक नहीं डूबें। उसके बाद 10 से 15 दिन के अन्तराल पर 8 से 10 सिंचाइयाँ करना आवश्यक हैं।

निराई गुड़ाई एवं मिटटी चढ़ाना:-

आलू के पौधे जब 12 से 15 सेमी लम्बे हो जाये तो एक हल्की सिंचाई करके ओट आने पर खुरपी की सहायता से खरपतवार निकाल दे और साथ ही कुदाल से मिटटी को भुरभुरा करके यूरिया के साथ दी जाने वाली मात्रा को देकर मिटटी चढ़ा दें। यूरिया डालते समय इस बात का ध्यान रहे की ओस न रहे अन्यथा यूरिया से पत्ते जलने का डर रहता हैं।

फसल सुरक्षा:-


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(अ) रोग नियंत्रण:-

  1. विषाणु:- रोगों के प्रसार करने वाले कीटों की रोकथाम के लिए बुआई के समय थिमेट ग्रेन्यूल को 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में प्रयोग करना चाहिए। 
  2. अगेती एवं पछेती झुलसा:- इसके लिए 2 से 2.5 किग्रा डाइथेन जेड 78 या एम-45 को 1000 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें और आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतर पर दोहरायें। 
  3. आलू की कोढ़:- डायमेकरान 250 मिली या मेटासिस्टॉक्स 1 लीटर, 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
(ब) किट नियंत्रण:-

  1. एपीलेकना बिटिल:- इस किट की शुड़ी (ग्रब) व वयस्क दोनों ही पत्तिया खातें हैं जिससे पतियों में केवल नसे ही बची रहती हैं। यह किट पीले रंग के होते हैं, जिसके शरीर पर काटेदार रचना पाई जाती हैं। इनकी रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर इंडोसल्फान 35 ई.सी. 1.25 लीटर या कार्बरील की 5 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण की 2 किग्रा दवा 800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 
  2. कटवर्म:- यह जमीन के अंदर रहने वाले किट हैं। इसकी शुंडी रात में छोटे-छोटे पौधों के तनो को जमीन की सतह पर से काट देते हैं और दिन में जमीन के अंदर घुस जातें हैं। इस किट की सुड़ियाँ कम विकसित कंदों को भी खा जाती हैं। एल्ड्रिन चूर्ण 5 प्रतिशत 25-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय अंतिम जुताई से पूर्व  मिटटी में मिला देना चाहिए।  किट के नियंत्रण हेतु क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. को 2.0 लीटर दवा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 
  3. आलू का माहू:- यह हरे रंग का किट  होता हैं। इसके शिशु तथा प्रौंढ़ किट पतियों का रस चूसते हैं। यह आलू के फसल में विषाणु रोग भी फैलातें है। इसकी रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर डाइमेथोएट 30 इ.सी. की एक लीटर दवा या मिथ्याइ-ओ-डिमेटान 25 ई.सी. की एक लीटर दवा को 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 
  4. सफेद लट या गुबरेला (ह्वाइट ग्रब):- ये किट जमीन के अंदर पाए जाने वाले आलू की फसल के भाग को खाकर उसे नष्ट करतें हैं। इसके लिए प्रति हेक्टेयर फोरेट 10 जी.आर. या कार्बोफ्यूरान 3 जी.आर. 15 किग्रा बुआई के पूर्व मिला दें। 
खुदाई:-

भंडारण के लिए खुदाई हमेशा परिपक्व अवस्था में करना चाहिए। खुदाई के 10 से 12 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए ताकि छिलका सख्त हो जाए। आलू का तना भी खुदाई से 15 दिन पूर्व काट दें। इससे कीड़े नहीं लगतें हैं छिलका सख्त होने में आसानी होता हैं। खुदाई प्रायः कुदाल से की जाती हैं। देशी हल से भी खुदाई की जा सकती हैं, परन्तु इसमें आलू जमीन में छूटने का डर  रहता हैं।  बड़े पैमाने पर खुदाई के लिए पोटैटो डिगर का भी प्रयोग किया जा सकता हैं। खुदाई के बाद्द आलुओं का ढेर बनाकर किसी छायादार स्थान पर रखकर बोरे इत्यादि से ढक देतें हैं जिससे धुप न लगे। ऐसा करने पर कंदों पर लगी मिटटी भी अलग हो जाती हैं। 

उपज:-
300-400 कुंतल प्रति हेक्टयर उपज प्राप्त होती हैं। 

लेखक :- ए. पी. सिंह M.Sc. agronomy (www.agriculturebaba.com)  
सहायक :- लिनी श्रीवास्तव  M.Sc.(Agronomy) 

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