तरल जैव उर्वरक
मृदा स्वस्थ्य के लिए उपयोगी मित्र सूक्ष्म जीवों को ही जैव उर्वरक कहा जाता हैं, जिनके प्रयोग से पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती हैं। जड़ों के पास पौधों की प्रारम्भिक अवस्था में इन सूक्ष्म जीवों (जीवाणुओं) की वांछित जनसंख्या होने पर क्षमता अनुसार अनुकूल परिस्थिति में वायुमणडंलीय नत्रजन का स्थिरीकण व मिटटी में उपस्थित अघुलनशील फास्फोरस, पोटाश, जिंक, लौह व मैग्नीशियम आदि आवश्यक तत्वों को घुलनशील करके पौधों के लिए इनकी उपलब्धता में वृद्धि करतें हैं। इन मित्र सूक्ष्म जीवों के मातृ-जनक को संवर्धित कर तरल जैव उर्वरक के रूप में फसलों में प्रयोग किया जाता हैं। किसी भी जैव उर्वरक उत्पाद में पोषक तत्वों की मात्रा उपलब्ध नहीं होती हैं अपितु जैव उर्वरक (वाहक या तरल मिश्रण) के प्रत्येक ग्राम या मिली में इन जीवाणुओं की मानक के अनुरूप वांक्षित संख्या निर्धारित रहती हैं। आधुनिक कृषि में जैव उर्वरकों को रासायनिक उर्वरकों के पूरक के रूप में प्रयोग करने से रासायनिक उर्वरकों की क्षमता बढ़ जाती हैं। इन्हे पर्यावरण मित्र, प्रदूषण मुक्त, मृदा संजीवनी, शुलभ, सस्ते एवं पूर्णतः हानि रहित माना गया हैं।
तरल जैव उर्वरकों के लाभ:-
- तरल जैव उर्वरकों के उत्पाद में जीवाणुओं की न्यूनतम जनसंख्या 10-50 करोड़ जीवाणु / मिली 12-24 माह तक रहती हैं साथ ही अवांछित जीवाणु संख्या नगण्य होती हैं।
- इनकी पहचान आसानी से विशिष्ट गंध द्धारा की जा सकती हैं।
- इनमें एंजाइमों की सक्रियता अधिक होती हैं जो पौध वृद्धि के लिए लाभकारी होता हैं।
- प्रत्येक वंश / प्रजाति के जीवाणुओं की कार्य क्षमता में भिन्नता, खेत की भौतिक, जैविक एवं रसायनिक स्थिति के अनुरूप होती हैं।
- ये रसायनिक उर्वरको के पूरक हैं जिनके प्रयोग से फसल उपज में 10-20 प्रतिशत की वृद्धि होती हैं।
- मित्र जीवाणुओं द्धारा हार्मोन्स, एमिनो एसिड, पेप्टाइड्स, प्रोटीन्स एवं विटामिन्स का रिसाव होता हैं जो पौध वृद्धि के लिए अति आवश्यक हैं।
- जीवाणुओं द्धारा शत्रु वंश के वाइरस, जीवाणु एवं फफूंदी की वंश वृद्धि को रोकने के लिए विषाक्तयुक्त रसायनों का रिसाव भी होता हैं, जो फसल के शत्रु वंश वृद्धि को रोकने के कारण फसल सुरक्षा में भी ये सहायक होते हैं।
- ये मिटटी में उपस्थित कार्बनिक व अकार्बनिक सभी अघुलनशील जटिल यौगिकों को सरल यौगिक में बदल देतें हैं, परिणामतः पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती हैं।
- बीज उपचार:- बीज बोई जाने वाली फसलों में बीज उपचार विधि द्धारा 500 मिली तरल जैव उर्वरक को 2 से 3 लीटर स्वच्छ पीने योग्य पानी में घोल बना लेते हैं। घोल को 50 से 60 किग्रा बीज के ढेर पर धीरे-धीरे डालकर हाथ से मिलाते जाते हैं। 15 से 20 मिनट में पानी बीज एवं हवा से सुख जाने पर उपचारित बीजों की यथाशीघ्र बोआई कर दिया जाता हैं।
- जड़ उपचार:- रोपाई की जाने वाली फसलों के लिए इस विधि से 500 मिली जैव उर्वरकों का 4 से 5 लीटर स्वच्छ पिने योग्य पानी छिछले बर्तन में घोल बना ले। घोल में पौधों की जड़ों को 20-30 मिनट डुबों कर रख ले। उपचारित पौधों को घोल से निकालकर पुनः दूसरी पौध जड़ों को उसी घोल में डुबों कर रख दे। उपचारित पौधों को छाया में सूखने दें। सूखने के बाद यथाशीघ्र रोपाई कर दें। बर्तन में बचे हुए घोल को खेत में प्रयोग करें बहार न फेकें।
- मृदा उपचार:- इस विधि से प्रति एकड़ एक लीटर जैव उर्वरक को 10 से 15 लीटर पानी में घोल बनाकर 80-100 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद में 30 से 40 प्रतिशत नमी के साथ मिलाकर 7 से 10 दिन रखने के बाद आखिरी जुताई से पहले या गेहूं में पहला पानी देने से पहले व धान की रोपाई के बाद पानी साफ़ हो जाने पर प्रयोग करने से अधिक लाभ होता हैं।
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