वर्मीकम्पोस्ट:- मिट्टी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एक वरदान
Vermi-compost: A boon to Increase Soil Productivity
यह प्रकृति का सरल नियम है कि जो कुछ भी जरूरत से अधिक होगा, उसका दुष्परिणाम पर्यावरण पर दिखाई देगा, जिससे प्रदूषित हवा, पानी और मिट्टी; इसके परिणामस्वरूप, मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या कम हो गई है और इसका जैविक गुण विकृत हो गया है। खेत के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों के नुकसान से अत्यधिक हानि होगी। यह वर्तमान समय का सबसे चिंताजनक पहलू है क्योंकि रसायनों के अत्यधिक इस्तेमाल से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और उच्च स्तर के अवशिष्टों के साथ फसल उत्पादन होता है।
एक ही खेत में प्रति वर्ष दो से अधिक फसलों की खेती की जाती हैं क्योंकि प्रति व्यक्ति भू-जोत का आकार दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप उपलब्ध खेत का अत्यधिक इस्तेमाल किया जा रहा है, मिट्टी में पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए किसान अधिक से अधिक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह मिट्टी पर पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिए बहुत अधिक दबाव डाल रहा है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए विभिन्न प्रकार के जैव-उर्वरक जैसे वर्मीकम्पोस्टिंग मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए वरदान साबित होंगे।
क्या आप प्राकृतिक जुताई के बारे में अधिक जानना चाहते हैं?
केंचुआ मिट्टी को आलोड़ने वाला सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक जुताई का साधन हैं। जी हाँ, मिट्टी की परत में जो छोटे कीड़े आप देखते हैं, वे ही प्राकृतिक जुताई में हमारी मदद करते हैं। केचुएँ का जीवन काल तीन चरणों में बंटा हैं: अंडा, कीट और व्यस्क। अंडे की अवधि 4 से 7 दिनों की होती हैं, जो मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। कशेरुकी की स्थिति दो से तीन महीने तक रहती है और सामान्य रूप से एक व्यस्क केचुएं का जीवनकाल 3 से 6 वर्षों का होता है। इन सभी चरणों के लिए नम मिट्टी की आवश्यकता होती है और इसका जीवन काल मुख्य रूप से इसकी संतति पर निर्भर करता है। यदि आप केचुएँ को खरीद रहे हैं तो एक किलोग्राम में अक्सर एक हजार पूर्ण विकसित केचुएँ होंगे। इन 1000 केचुओं से, अनुकूल वातावरण में, एक वर्ष के भीतर एक लाख केंचुओं का उत्पादन किया जा सकता है। विभिन्न प्रयोगों और अनुसंधानों से स्पष्ट हुआ हैं कि एक सौ किलोग्राम व्यस्क केचुओं से एक माह में एक टन केचुओं का उत्पादन किया जा सकता है।
केचुएँ मिट्टी में पाएं जाने वाले जीव हैं और केचुओं की कुछ प्रजातियाँ मिट्टी की उपरी सतह के ठीक नीचे पाई जाते हैं। केचुओं की कुछ प्रजातियाँ मिट्टी में एक मीटर की गहराई तक निवास करती हैं; जो कार्बनिक पदार्थ और मिट्टी का भक्षण करते हैं; केचुओं की कुछ प्रजातियाँ मिट्टी में तीन या अधिक मीटर की गहराई में निवास करते पाए गए हैं। मिट्टी का कार्बनिक पदार्थ खाने के बाद, वह मल के रूप में मिट्टी का उत्सर्जन करते हैं, जिसे कीट खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। केचुएँ जितना खाते हैं उसका केवल 5% ही खुद के लिए इस्तेमाल करते हैं जबकि शेष 90% को उत्सर्जित कर देते हैं। केचुओं की प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण, पौधों के विकास के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ जैसे पोषक तत्व, हार्मोन, उपयोगी सूक्षमजीव आदि की आपूर्ति होती है। इसका लाभ यह है कि मिट्टी में बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती हैं और विभिन्न प्रकार पोषक तत्वों और हार्मोन की आपूर्ति के कारण पौधों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।
क्या आप वर्मीकम्पोस्ट के लाभों के बारे में जानते हैं?
Do you know the benefits of vermicompost?
हम मुख्य रूप से उन सभी सामग्रीयों पर ध्यान केन्द्रित करेंगें जिसका इस्तेमाल वर्मीकम्पोस्ट के लिए किया जाता है एवं इसके लाभों के विषय में आज हम सभी जानकारी प्राप्त करेंगें।
वर्मी-कम्पोस्ट तैयार के लिए किसी भी प्रकार के कच्चे सामग्री खरीदने की आवश्यकता नहीं होती हैं। आप किसान मित्र नीचे दिए गए सभी प्रकार के अवशिष्टों का इस्तेमाल करके अपने खेत में कर सकतें है, जैसे कि
फसलों के अवशेष :- पत्ते , डंठल , फल , फली , खोल , पुआल इत्यादि।
रसोई के बगीचे से प्राप्त अपशिष्ट :- पत्तियाँ , डंठल , फल इत्यादि।
हरे खाद वाली फसलें :- सनई , ढैंचा , ग्लिसराइडियाँ और अन्य हरी खाद वाली फसलें।
पशु अपशिष्ट :- पशु मूत्र एवं गोबर, पोल्ट्री फार्म का मल तथा बकरी के मल इत्यादि
रसोई अपशिष्ट :- सब्जी अवशेष, फल, मूँगफली इत्यादि।
यह एक प्राकृतिक पुनःचक्रण की विधि हैं एवं जिसके माध्यम से हम कार्बनिक तत्वों का एक बार फिर से इस्तेमाल कर सकतें हैं। तथा इनके अनेक लाभ हैं जो की हमें यह विचार करता है या समझता हैं की यह मिट्टी और फसल दोनों की स्थितियों को पूर्व के फसल को बेहतर बनाने में मदद्गार साबित हो रहा होता हैं।
- केंचुआ खाद / वर्मी-कम्पोस्ट के लाभ :-
- केंचुआ मिट्टी की प्राकृतिक तरीके से जुताई करता हैं,जो मिट्टी को अधिक रन्ध्र युक्त बनाता हैं।
- मिट्टी की अधिक रन्ध्र युक्त प्रकृति पानी और हवा की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति करने में मदद करती हैं एवं पर्याप्त स्थान उपलब्ध होने के कारण पौधों की जड़ें भूमि के भीतर अच्छी तरह से विकसित होती हैं।
- मिट्टी की अधिक रन्ध्र युक्त प्रकृति न केवल पानी को आसानी से निकलने में मदद करती हैं, बल्कि पानी को धारण करने की क्षमता में मदद करती हैं।
- वर्षा कम होने की स्थिति में फसल को मिट्टी में जमा नमी का लाभ देती हैं तथा नमी की स्थिति के दौरान इससे कोई नुकसान नहीं होता हैं।
- वर्मी-कम्पोस्ट की संरचना दानेदार होने की वजह से यह मिट्टी के कणों को जोर से पकड़ कर रखने में मदद करता हैं, यह मिट्टी के अपरदन के नुक्सान को कम करने में सहायक हैं।
- वर्मी-कम्पोस्ट में मुख्य रूप से सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्ध होतें हैं, इसलिए इन्हें फसलों द्धारा आसानी पूर्वक अवशोषित हो जाता हैं।
- इससे पोषक तत्व अपने-अपने आयनिक रूपों में मौजूद होते हैं जो पौधों की जड़ों माध्यम से आसानी पूर्वक अवशोषित हो जाते हैं।
- केंचुए के पाचन तंत्र में अनेक प्रकार के सूक्ष्म-जीव पाए जातें हैं, जिसमें ऐक्टिनोमैसेटस, स्ट्रेप्टोमाइसिन, ऐजोबैक्टर और विभिन्न कवक उपभेद जैसे बैक्टीरिया शामिल हैं।
- ये सूक्ष्म जीव विभिन्न प्रकार के बीमारीयों के विरुद्ध पौधों के जड़ क्षेत्र में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में मदद करतें हैं।
- केंचुआ जैविक सामग्री का भक्षण करता हैं और यह जैविक खाद के रूप में बदल हैं। अधिकांश किसान मित्र अपशिष्ट पदार्थों को जला देतें हैं तथापि जिससे बहुमूल्य वर्मी-कम्पोस्ट में परिवर्तित किया जा सकता हैं।
- वर्मी-कम्पोस्ट एक -संसाधन हैं जो कचरे से प्राप्त हैं इसलिए प्रत्येक किसान मित्र अपनी जरूरत के मुताबिक अपने खेत के अपशिस्ट पदार्थ से अपना वर्मी- कम्पोस्ट बना सकते हैं।
- यह उत्पादन लागत को कम करके, लाभ को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता हैं।
- यदि वर्मी-कम्पोस्ट का बिस्तर बनाया जाय तो वर्मी-वॉश को आसानी पूर्वक जमा और संग्रहित किया जा सकता हैं।
- वर्मी-वॉश का उपयोग अधिकांश फसलों में किट प्रकोप के विरुद्ध छिड़काव करने के लिए किया जा हैं।
लेखक :- ए. पी. सिंह M.Sc. agronomy (www.agriculturebaba.com)
सहायक :- लिनी श्रीवास्तव M.Sc.(Agronomy)
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