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गेंदें के फूल की वैज्ञानिक तरीके से खेती

CULTIVATING MARIGOLD OR BALL FLOWERS SCIENTIFICALLY

गेंदें के फूल की वैज्ञानिक तरीके से खेती 


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भारत देश में आज से 20-40 वर्ष पूर्व तक फूलों की खेती बहुत ही सीमित क्षेत्र में किसी खास उद्देश्य से की जाती थी, परन्तु पिछले कुछ दशक वर्षों से इनकी खेती  व्यवसायिक उद्देश्य के लिए की जाने, जाने लगी तत्प्श्चात वर्तमान समय में फूलों की मांग बाजार में पूरे वर्षभर बनी रहती हैं। इनका उपयोग सभी तरह के धार्मिक कार्यक्रम, तीज-त्यौहारों, धार्मिक स्थानों तथा घरों की सजावटो, देवी एवं देवताओं को अर्पित करने एवं शादी-विवाह के शुभ कार्यक्रम में मण्डप तथा स्टेज की सजावट, पुष्प-गुलदस्ता बनाकर अतिथिगण के स्वागत करने के अलावा मूल्य सवंर्धित वस्तु एवं उत्पादों को बनाने के लिये भी किया जाता हैं। साथ ही साथ आजकल अनेक प्रजातियों के फूल एवं बीज भी एक देश से दूसरे देशों में आयत व निर्यात किये जाने लगे हैं। इन सभी उपरोक्त तथ्यों से फूलों की मांग लगातार दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिसके कारण इनकी खेती अन्य फसलों की अपेक्षा किसानों के लिये ज्यादा फायदेमन्द साबित हो रही हैं। 
विश्व में फूल वाली फसलों में गेंदे का एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। यह एक स्टेरेसी कुल से संबंध रखता है एवं टैजेटिस वंश(जीनस) के अंतर्गत आता हैं। इसकी मुख्यतः दो प्रजातियां फ्रेंच गेंदा (टेजेटिस पेटुला) एवं अफ्रीकन गेंदा (टैजेटिस इरेक्टा) काफी प्रचलित हैं। एक अन्य स्पीसीज टैजेटिस माइन्यूटा को भी कुछ स्थानों पर तेल निकलने के लिए उगाया जाता हैं। गेंदे का उत्पत्ति स्थान मध्य अमेरिका एवं दक्षिणी अमेरिका हैं, परन्तु खासतौर पर मैक्सिको को माना जाता हैं। 16 वीं शताब्दी की शुरूआती दौर में ही गेंदा, मैक्सिको से विश्व के अत्यधिक भागों में प्रचलित हुआ। लेकिन अफ्रीकन गेंदे का स्पेन में सर्वप्रथम प्रवेश 16 वीं शताब्दी में हुआ और यह #Rose of the indies नाम से समस्त दक्षिणी यूरोप में प्रसिद्ध होते हुए भारत में भी इसका प्रवेश पुर्तगालियों के द्वारा करवाया गया। 


Selection of land for good production of marigold
गेंदे के फूल के अच्छे उत्पादन के लिए भूमि का चयन


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गेंदे का पौधा सहनशील (Tolerant) प्रकृति का होता हैं। इसकी खेती सभी प्रकार की भूमियों में आसानी से कर सकती हैं। गेंदे के पुष्प के अच्छे उत्पादन के लिए उचित जल निकास वाली, बलुई-दोमट मृदा में आसानी पूर्वक जिसका पी एच मान 6.5-7.5 के मध्य रहेगी, तत्प्श्चात साथ ही उसमें जीवांश पदार्थो का प्रचुर मात्रा (Plenty) हो, इस प्रकार की गेंदें की खेती के लिए उत्तम मानी जाती हैं। 


Climate for ball flower cultivation
गेंदें के फूल की खेती के लिए जलवायु 
गेंदें की फूल के पौधों की बढ़वार व अधिक पुष्पोत्पादन के लिए खुले स्थान का चयन करना चाहिए, जहां पर सूर्य की रोशनी सुबह से लेकर शाम तक रहती हैं।ऐसे स्थानों पर गेंदे के फूल की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। छायादार स्थानों पर गेंदें की खेती में पुष्प उत्पादन बहुत ही कम जाता है एवं गुणवत्ता एवं बढ़वार भी घट जाती हैं। इसके लिए विशेषतौर पर शीतोष्ण एवं सम-शीतोष्ण जलवायु ही उपयुक्त मानी गयी हैं। गेंदे फूल की खेती के लिए 15-25 डिग्री-सेल्सियस तापमान पर फूलों की संख्या तथा गुणवत्ता एवं बढ़वार के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।  जबकि उच्च तापमान एवं कम तापमान पुष्पोत्पादन पर विपरीत प्रभाव डाल सकता हैं। 

Key Features of Ball Flowers
गेंदें के फूलों की प्रमुख विशेषताएँ 
विश्व में जीनस टैजेटिस की लगभग 33 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से व्यावसायिक रूप से दो महत्वपूर्ण प्रजातियां मानी जाती हैं।
  1. "टैजेटिस इरेक्टा एल" (Tagetes Erecta L.) इसे आमतौर पर अफ्रीकी गेंदें का फूल कहा जाता हैं।  
  2. "टेजेटिस पेटुला एल." (Tegetis Petula L.) फ्रेंच गेंदा के फूल के रूप में माना जाता हैं।  
तथा एक अन्य स्पीसीज "टैजेटिस माइन्यूटा" (Tagetis Mineuta), जिसे जंगली गेंदा के फूल के नाम से भी लोकप्रिय जाना जाता हैं एवं इस प्रजाति को पिछले कुछ वर्षों से तेल निष्कासन हेतु पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी पैदावार करके उगाया जा रहा हैं। 
टैजेटिस इरेक्टा- (Tagetis Erecta)


अफ्रिका गेंदा एक वार्षिक पौधा हैं एवं इसकी ऊंचाई एक मीटर या एक से अधिक मीटर हो जाती है तथा पौधा सीधा एवं लचीले शाखाओं वाला होता हैं, इसके फूल बड़े आकार वाले 7 से 10 सेंटीमीटर पीले एवं नारंगी रंगों की एवं विभिन्न छाया में अर्थात् हल्का पीला, नारंगी पीला, लाल पीला, सुनहरा नारंगी, कैडमियम नारंगी, उज्ज्वल-बैगनी नारंगी, एवं गहरे नारंगी रेगों में होते हैं। इस प्रजाति में गुणसूत्रों की संख्या 24 पायी जाती हैं। इसकी प्रमुख किस्मों के निम्न प्रकार हैं पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा, पूसा सदाबहार, अफ्रीकन जाइंट, गोल्डन ऐज, अफ्रीकन जाइंट ऑरेंज, क्रेकर जेक, क्लाइमेक्स आदि।  
टेजेटिस पेटुला-(Tagetis Petula)

फ्रेंच गेंदा 
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यह तुलनात्मक रूप से बौना प्रजाति का 20-60 सेंटीमीटर ऊंचाई वाला वार्षिक पौधा हैं। जिस पर छोटे व मध्य्म आकार के (3-5 सेंटीमीटर) के लेमन पीले, हल्के सुनहरे पीले एवं नारंगी रंग के हल्के लाल फूल होते हैं। इस प्रजाति में गुणसुत्रों की संख्या 48 होती हैं। इसकी प्रमुख किस्में हैं:- पूसा दीप, पूसा अर्पिता, हिसार ब्यूटी, हिसार जाफरी-2, रस्टी रेड, रेड बोकार्डो, बटर स्कॉच, फ्लैश, वालेंसिया, सुकाना आदि। 

टेजेटिस माइन्यूटा-(Tagetis Minuta)

जंगली गेंदा 
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जंगली गेंदा का ये प्रजाति हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर एवं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में भी उगायी जाती हैं। इसके पौधें सीधे तथा 1-2 मीटर लम्बे  एवं  लचीले शाखाओं से युक्त होतें हैं। गेंदें फूल की खेती की जाने वाले सभी प्रजातियों में टैजैटिस माइन्यूटा उच्च गुणवत्ता युक्त एवं अधिक तेल युक्त होता हैं। 

गेंदें के पौधें का प्रवर्धन करने के लिये आसान तरीका

गेंदे फूल के प्रसारण बीज एवं कलम (कटिंग) विधि द्वारा असानी पूर्वक किया जा हैं। गेंदें फूल के द्वारा तैयार किये गए बीज अच्छे एवं अधिक उपज देने वाले होते हैं। अतः गेंदें की फूल की व्यावसायिक खेती के लिये अत्यधिक फूल के बीज द्वारा ही नये पौधे तैयार किये जाते हैं जोकि अच्छे सिद्ध होते हैं। 

Time to Prepare Balls for Plants
गेंदें के पौधे तैयार के लिये उचित समय 

गेंदें के पौधें तैयार करने का सही समय स्थानीय जलवायु एवं उगायी जाने वाली जाति पर निर्भर करती हैं। उत्तर भारत में गेंदें के पौध की रोपाई उस वर्ष के तीनो मौसम सर्दी, गर्मी एवं वर्षा के समय में की जाती हैं। किस्म का चुनाव मौसम के आधार पर ही किया जाता हैं। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में गेंदें के पौधें सामन्यतः सर्दियों में ही उगाया जाता है एवं इस समय के मौसम में इन किस्मों का प्रदर्शन बेहतर होता हैं। परन्तु इनकी मांग के अनुसार गेंदें के पौधें को आसानी से अन्य मौसम में भी उगाया जाता हैं। 

गेंदें फूल के लिए खेत की तैयारी  


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गेंदें के पौधे रोपाई से पूर्व ही खेत की तैयारी पर भी विशेष ध्यान देना प्रांरभ कर देना चाहिए क्यों कि जब खेत भली-भांति तैयार होगा तभी अच्छी उपज देगा।अतः अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करे एवं 2-3 जुताई देशी हल से करना आवश्यक हैं एवं मिटटी को अच्छी तरह से भुर-भरा बनाने के साथ ही खेत की तैयारी करते समय संतुंलित मात्रा में जैविक-खाद एवं निश्चित मात्रा में ही उर्वरक (जितनी उस स्थान के भूमि को आवश्यक हो) भी दे। 

Features of Major Varieties of Marigold
गेंदे फूल की प्रमुख किस्म की विशेषताएं
गेंदें के फूल की खेती के लिए किस्मों का चयन करते समय हमेशा अत्यधिक सावधानी पूर्वक करनी चाहिए, क्योंकि इन किस्मों का प्रदर्शन, मौसम विशेष, क्षेत्र की जलवायु, मृदा की दशाएं इत्यादि तथ्योँ को प्रभवित करता हैं एवं भारत देश में उगायी जाने वाली गेंदे की प्रमुख किस्म की विशेषतायें निम्न प्रकार हैं। 
Pusa Orange Marigold (पूसा नारंगी गेंदा):- 


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यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान(#ICAR), नई दिल्ली द्वारा 1955 में सम्पूर्ण भारतवर्ष  में उगाए जाने के लिये विकशित किया गया। इस किस्म के बीज बुआई के 125 से 136 दिनों पश्चात इसमें पुष्पन प्रारंभ हो जाता हैं। इस किस्म के फुल बड़ें आकार वाले तथा गहरे नांरगी रंग के होते हैं एवं इसमें कैरोटिनॉइडस (329 मिलीग्राम प्रति 1000 ग्राम पंखुड़ियों में) की भी अधिकत्ता पायी जाती हैं जो कि पोल्ट्री उद्धोगो में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता हैं। गेंदें के ताजे फूलों की पैदावार हेतु 25-30 टन/हेक्टेयर तक होती हैं। यदि गेंदें की फसल, बीज उत्पादन के लिये उगायी जाए तो इसमें 100 से 125 किलोग्राम प्रति हैक्टर तक अच्छे बीज प्राप्त किया जा सकता हैं। 

Pusa Basanti Marigold (पूसा बसंती गेंदा):-


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गेंदें फूल की ये किस्म बुआई के 135 से 145 दिन बाद, मध्यम आकार वालें पीले रंग के फूल उत्पन्न करता हैं एवं बगीचों एवं गमलें में उगाने के लिये यह एक अच्छी किस्म की एवं ताजे फूलों की पैदावार लगभग 20 से 25 टन प्रति हैक्टर एवं बीज की उपज लगभग 0.7-1.0 टन प्रति हैक्टर तक प्राप्त की जा सकती हैं। 
Pusa Arpita (पूसा अर्पिता):-


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यह फ्रेंच गेंदा का किस्म हैं तथा ये भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्धारा वर्ष 2009 में प्रसारित की गयी थी। यह उत्तरी मैदानी भागों में उगाने के लिए यह एक अच्छी किस्म की हैं। भारत के उत्तरी मैदानी भागों में मध्य दिसंबर से मध्य फरवरी तक मध्यम आकार के हल्के नारंगी फूल पैदा करती हैं।  इससे ताजे फूलों की उपज 18 से 20 टन प्रति हेक्टेयर तक आंकी गयी हैं। 

Pusa Deep (पूसा दीप):- 


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पूसा दीप फ्रेंच गेंदे की यह एक अगेती किस्म हैं जो की रोपाई के 85 से 95 दिन के पश्चात पुष्पन प्रारम्भ कर देती हैं। उत्तरी मैदानी भागों में इस किस्म की खेती अक्टूबर से नवम्बर के महीनो के दौरान फूल आतें हैं। पौधे मध्यम आकार के और फैलावदार होते हैं एवं इनकी ऊंचाई 55 से 65 सेंटीमीटर तथा फैलाव 50 से 55 सेंटीमीटर होता हैं। इसमें ठोस तथा गहरें भूरे रंग के मझोले आकार के फूल लगतें हैं। इस किस्म के फूलों की उपज 18 से 20 टन प्रति हेक्टेयर के लगभग होती हैं। 


Pusa Bahar (पूसा बहार):- 


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पूसा बहार अफ्रीकन गेंदें की यह एक अच्छी किस्म होती है जिसकी बुआई के 90 से 100 दिनों में फूल देना प्रारम्भ कर देती हैं एवं इसके पौधो की ऊँचाई 75 से 85 सेंटीमीटर तक होती हैं।  इसके फूलों के पीले रंग  कॉम्पैक्ट, आकर्षक और बड़े आकार के "8 से 9 सेन्टीमीटर तक के होतें हैं। इसमें पुष्पन का समय सर्दियों में जनवरी से मार्च के मध्य तक अत्यधिक होता हैं।    

 How for will the distance of the balls of the plants be beneficial
गेंदें के पौधें की रापेण कितनी दूरी रहेगी फायदेमन्द


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गेंदें के पौधे की रोपाई आमतौर पर बीज बोन के 25 से 30 दिनों के पश्चात जब पौधे पर 3 से 4 पत्तियाँ आने लगें तो तैयार क्यारियों में करनी चाहिए तथा  30 दिन से ज्यादा पुरानी पौधे की रोपाई करने से पैदावार में कमी आ जाती हैं। पौधे रोपण की दुरी उगाई जाने वाली मृदा की किस्म एवं उसकी भौतिक दशा तथा रोपण विधि इत्यादि बातों पर निर्भर करती हैं। अफ्रीकन गेंदें के पौधों की रोपाई 40 x 40 सेंटीमीटर "पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे" की दूरी पर करना चाहिए जबकि फ्रेंच गेंदें की रोपाई 20 x 20 सेंटीमीटर की दूरी पर करें। पौधों की रोपाई हमेशा शाम के समय में ही करनी चाहिए तथा पौधे के चारों ओर की मिट्टी को अच्छी तरह से एवं हल्के हाथों से दबा देना चाहिए।  

  
Proper Time for Preparing and Planting Marigold
             गेंदा पौध तैयार करने एवं रोपण का उचित समय

क्र.सं.    मौसम     बुआई का समय             पौध रोपण का समय 

  1.      सर्दी              सितंबर-अक्टूबर                           अक्टूबर - नवंबर 

  2.      गर्मी             जनवरी-फरवरी                             फरवरी-मार्च 

  3.      वर्षा              जून-जुलाई                                  जुलाई-अगस्त 
Use of Balanced Fertilizers and Fertilizers Yields Gains
संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक के प्रयोग से पैदावार में फायदा
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खाद एवं उर्वरक के प्रयोग का मुख्य उद्देश्य पौधों का समुचित विकास एवं बढ़वार के साथ ही मृदा में अनुकूलन पोषण दशांए बनाए रखना होता हैं। उर्वरकों के काम में लेने का उचित तौर पर मृदा का स्वभाव, पोषक तत्व, जलवायु और फसल के स्वभाव पर निर्भर करता हैं। इनकी मात्रा मृदा की उर्वरता तथा फसल को दी गयी कार्बनिक खादों की मात्रा पर निर्भर करती हैं। यदि संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक दी जाए तो निश्चित रूप से पौधों की अच्छी बढ़वार और पुष्प उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं अतः जहाँ  तक सम्भव हो सके तो हमेशा मृदा नमूनों की जाँच के उपरांत ही खाद एवं उर्वरक का उपयोग करना चाहिए सामान्यतः खेत तैयार  करतें समय 10 से 15 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मृदा में मिला दे एवं इसके अलावा 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश भी प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय ड्रेसिंग के रूप में डाल दे एवं शेष बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा को दो बराबर भागों में प्रथम रोपाई के एक महीने बाद एवं दूसरी 55 से 65 दिनों के बाद में छिड़काव विधि से दे देना चाहिए। 


Special Care should also be Given to Irrigation of Marigold Plants
गेंदे फूल के पौधें के सिंचाई का भी रखें विशेष ध्यान
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सिंचाई का सही समय कई कारकों जैसे मृदा का प्रकार एवं मृदा  में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा, मौसम इत्यादि पर निर्भर करता हैं। प्रथम सिंचाई पौध रोपण के तुरन्त पश्चात कर देना चाहिए एवं उसके बाद गर्मियों में 7 से 10 दिन के अन्तराल पर और सर्दियों में 15 से 20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए तथा बरसात के मौसम के समय में यदि बारिश नहीं होती हैं तो आवश्कतानुसार सिंचाई करतें रहना आवश्यक होता हैं। 

Do Weed Control on Time
समय पर करें खरपतवार नियंत्रण

पौध लगाने के कुछ समय उपरान्त उनके आस-पास विभिन्न प्रकार के खर-पतवार भी उग जातें हैं, जो की पौधे के साथ-साथ पोषक तत्वों, स्थान, नमी आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करतें रहतें हैं तथा साथ ही ये विभिन्न प्रकार के कीटों एवं बीमारियों को भी आश्रय प्रदान करतें रहतें हैं। अतः ये जरूरी हैं की जब खर-पतवार छोटे रहें उसी समय खेत से बाहर निकल दे एवं इसके पश्चात पहली निराई-गुड़ाई पौध रोपण के 20 से 30 दिनों के पश्चात एवं दूसरी लगभग एक महीने के बाद निराई-गुड़ाई करने से मृदा भूर-भूरी बनी रहती हैं, जिससे जड़ों का विकास अच्छा होता हैं।   

Supporting Ball Plants
गेंदें के पौधों को सहारा देना 
अफ्रीकन गेंदें के पौधे में यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होता हैं जब पौधा तेज हवा या वर्षा के कारण गिरने लगतें हैं तो पौधे के चारों तरफ मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता हैं एवं बाँस या खप्पचे की सहायता से भी इसको सहारा दिया जा सकता हैं एवं इसके फूलों  सही समय पर सहारा देने से इसके पौधे सीधे खड़े एवं फूलों की गुणवत्ता भी अच्छी बनी रहती हैं। 

Pitching to Pick more Flowers from Ball Plants
गेंदें के पौधें से अधिक फूल लेने के लिए पिचिंग करना 


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अफ्रीकन गेंदें  फूल के पौधें में पिंचिंग (शीर्षनोचन) अग्रस्थ प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता हैं। शीर्ष प्रभुता के कारण पौधे लम्बे एवं पतले हो जातें हैं जिन पर काफी कम संख्या में शाखाएं निकलती हैं, एवं इसके परिणाम स्वरूप फूलों की संख्या में बहुत कमी देखने को मिलती हैं और इस प्रक्रियां में गेंदें के पौधे के फैलाव को बढ़ाने के लिए शीर्षनोचन किया जाना अतिआवश्यक होता हैं। 

इस प्रक्रिया में गेंदें के पौधे के शीर्ष भाग 2 से 3 सेंटीमीटर को हाथ से सावधानीपूर्वक तोड़ दिया जाता हैं जिससे की पौधे की बगल वाली शाखाएं अधिक संख्या में निकले। इसके परिणाम स्वरूप कलियाँ भी अधिक मात्रा में बनती हैं और फूलों की उपज में लगातार बढ़ोत्तरी होती हैं, शीर्षनोचन करने का उपयुक्त समय पौधे रोपाई के 30 से 35 दिन के उपरान्त आता हैं जबकि पौधों में 1 से 2 पुष्प कलियां बनना प्रारम्भ हो जाती हैं। 


Special Features of Balls Flower Plant
गेंदें फूल के पौधे की विशेष-विशेषताएँ   


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गेंदें फूल के पौधें अन्य फसलों की तुलना में गेंदें की कुछ खास विशेषताएँ होती हैं इसके पौधे विभिन्न प्रकार की मृदाओं एवं जलवायु में सफलतापूर्वक उगने, पुष्पन की आर्थिक अवधि, पुष्प जीवनकाल अधिक होने के साथ-साथ इसमें किट एवं बीमारियों का प्रकोप भी कम होने के कारण यह एक फायदेमंद फसल हैं। गेंदें को गरीबों का पुष्प भी कहा गया हैं, परन्तु इसके फूल गरीब से लेकर अमीर तक के सभी वर्गों के लोगो को अतिप्रिय लगता हैं इसके फूलों का प्रयोग माला बनाने, पार्टी या विवाह के पण्डाल को सजाने से लेकर धार्मिक स्थलों में पूजा के लिए इसका प्रयोग किया जाता हैं। 
                                    गमलें एवं क्यारियों में लगाकर भू-दृश्य की सुन्दरता बढ़ाने में भी इसका उपयोग किया जाता हैं। साथ ही साथ इसके फूल एवं पत्तियों का उपयोग विभिन्न प्रकार की दवाईयों, तेल निष्कासन, आहार योग्य रंगों के उत्पादन में भी इसका उपयोग किया जाता हैं। इसके नारंगी फूल वाली किस्मों के फूलों की पंखुड़ियों में कैरोटिनाइड्स-पीला वर्णक (ल्यूटिन) अधिक्ता में पाया जाता हैं। इसका उपयोग पोल्ट्री-फार्म उद्द्योग में मुर्गियों के दाने के रूप में इसका उपयोग किया जाता हैं जिससे मुर्गियों के अण्डे की जर्दी का रंग पीला हो जाता हैं। इसकी जड़ों से अल्फ़ा-टेरथिएनिल नामक एक पदार्थ का निर्माण होता हैं जो मूल ग्रंथ सूत्र-कृमियों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। इसी कारण यह सब्जियों वाली फसलों के साथ-साथ पाली-हाउस में भी सूत्र-कृमियों की रोकथाम के लिए इसका उपयोग किया जाता हैं। 

Packing the Flowers of the Balls Properly
गेंदें के फूलों को सही तरिके से करें पैकिंग 


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गेंदें के फूलों की तुड़ाई हमेशा शाम के समय एवं ठण्डे स्थानों पर रखें तथा गेंदें के फूलों को स्थानीय बाजार में भेजने के लिए टाट के बोरें में सावधानी पूर्वक पैक किया जाता हैं और सुदूर के बाज़ारों के लिए बांस की टोकरी का इस्तेमाल किया जाता हैं।  
How to Control Pests and Diseases at the Right Time
कैसे करें सही समय पर कीट एवं बीमारियों पर नियंत्रण
गेंदें का पौधा बहुत ही सहनशील होता हैं, तथा इस पर किट एवं बीमारीयों का आक्रमण काफी हद तक कम होता हैं, परन्तु उचित समय पर ही इनकी सही तरिके से पहचान करके नियंत्रण नहीं किया जाए तो ये अत्यधिक बार बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुँचती हैं। 
  • गेंदें के फूल अथवा पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख किट एवं बीमारियाँ निम्नलिखित हैं। 
Wet Melting (आर्द्र गलन) :- 


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ये रोग राइजोक्टोनियाँ सोलानी नामक फफूंद से फैलता हैं तथा इसकी समस्या ज्यादातर पौधे तैयार करते समय नर्सरी घर में ही देखने को मिलती हैं। इस रोग ग्रसित पौधे का तना गलने लगता हैं एवं जब पौधे को उखाड़कर देखतें हैं तो इसका जड़ तंत्र भी सड़ा हुआ दिखाई देता हैं। इसकी रोकथाम के लिए बीजों को बुआई से पूर्व 3 ग्राम कैप्टान या 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करना अनिवार्य होता हैं। खड़े पौधे में ऐसी समस्या आने पर उपरोक्त फफूंदनाशी दवा के 0.2 प्रतिशत के घोल से उपचारित करना चाहिए।  
Poudry Mildew (पाउडरी मिल्ड्यू) :-


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ओडियम स्पीसीज के कारण यह रोग फैलता हैं एवं इस फफूंद से प्रभावित पौधो की पत्तियों के ऊपरी तरफ की ओर से सफेद चूर्ण जैसे चमकते हुए प्रतीत होते हैं  तथा इसकी वजह से पुष्प उत्पादन में काफी कमी आ जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक (सल्फैक्स) एक लीटर या कैराथेन 40 ई.सी., 150 मि.ली. प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में मिलाकर 15 दिनों के अन्तराल पर पुनः दोहराए। 
Flower Bud Rot Disease (पुष्प कली सड़न रोग) :- यह रोग अल्टरनेरिया डाइऐन्थी द्धारा फैलता हैं। इसमें नई कलियाँ काफी प्रभवित हैं फूलों की पंखुड़ियों पर भी काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं एवं जो की बाद में पूरे फूल पर फ़ैल जातें हैं। इसकी रोकथाम के लिए रिडोमिल या डाइथेन एम-45 का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 10-12 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करतें रहना चाहिए।   
Leaf spot disease (पत्ती धब्बा रोग) :- 


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अल्टरनेरिया टैजेटिका कवक के प्रकोप के कारण पौधे की पत्तियों के ऊपर भूरे रंग के गोल की धब्बे दिखाई देने लगती हैं, जो की धीरे-धीरे पत्तियों को ख़राब कर देती हैं एवं इसकी रोकथाम के लिए बविटिन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में छिड़काव करें। 
Red Spider Might (लाल मकड़ी) :-


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यह एक आठ पैरों वाला किट बहुत ही छोटा होता हैं लगभग एक बिन्दू के समान तथा लाल रंग का लिए होता हैं।  यह पत्तियों के निचले भाग पर आक्रमण ज्यादा करता हैं। माइट गेंदें की पत्तियों का रस चूस लेते हैं जिससे पत्तियों का रंग हरे रंग से भूरे रंग में परिवर्तित होने लगती हैं तथा पौधे की बढ़वार बिलकुल रुक जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए मैटासिस्टाक्स या रोगर का 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।  
Gusset Borer Kit (कली छेदक किट) :-


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इस किट की लट (सुंडी) फूल की कलियों में छेद कर देती हैं।  किट के नियंत्रण को बढ़ावा देती हैं। इस किट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान या क्यूनालफॉन्स या प्रोफेनोफॉन्स 1.5-2 मि.ली. का 3 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।  
Moyla Kit (मोयला किट) :- यह किट हरे रंग का होता हैं।  ये किट पत्तियों की निचली सतह से रस को चूसकर काफी मात्रा में हानि पहुँचता हैं।  यह विषाणु रोग भी फ़ैलाने में भी सहायक होता हैं। इसकी रोकथाम के लिए 300 मि.ली. डाईमेथोएट (रोगर) 30 ई.सी. या मैटासिस्टाक्स 25 ई.सी. को प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।  यदि इसकी आवश्यकता पड़े तो इसे 10 दिनों के पश्चात या अंतराल पर इसे पुनः दोहराए। 
Harvest Flowers in Time

फूलों की समय पर तुड़ाई करें 


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गेंदें के फूलों की तुड़ाई फूलों के पूर्ण विकसित होने पर ही करें  तथा इन फूलों की तुड़ाई सुबह या शाम के समय ही जब मौसम ठण्ड रहे उचित रहता हैं। फूल की तुड़ाई करने से एक दिन पूर्व खेत में हल्का पानी अवश्य लगा देना अनिवार्य होता हैं जिससे की फूल में ताजगी बनी रहती हैं एवं उन्हें ज्याद समय तक रखा जा सकता हैं।  फूलों को तोड़ते से इस बात का हमेशा ध्यान रहे की पुष्प के नीचे का लगभग 0.5 सेंटीमीटर लम्बा हरा डंठल पुष्प से जुड़ा हुआ हो। सामन्यतः अफ्रीकन गेंदें के फूल 15 से 20 टन व फ्रेंच गेंदें से 12 से 15 टन प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती हैं। फूलों की उपज उगाई जाने वाली किस्म, मिट्टी, पौधे से पौधे के पंक्तियों के मध्य की दूरी, खाद एवं उर्वरक के प्रयोग की मात्रा इत्यादि पर निर्भर करती हैं।    
How to Prepare Healthy Balls of Balls

गेंदें के स्वस्थ पौधों को कैसे तैयार करें 


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गेंदें की बीज चमकदार और जैट काले रंग के रंगे होते हैं, जिन्हे एकेन कहतें हैं। गेंदें के पौधे तैयार करने के लिए हमेशा स्वस्थ व पके बीजों का ही चयन करना चाहिए। साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना आवश्यक होगा की बीज ज्यादा पुराने न हों, क्योकि बीज में साल भर के बाद उसके अंकुरण प्रतिशत में कमी आने लगती हैं।
गेंदें के एक ग्राम बीज में औसतन 300 से 350 की संख्या में बीज होते हैं। गर्मी और वर्षा के मौसम में पौधे तैयार करने के लिए 250 से 300 ग्राम बीज प्रति एकड़ तथा सर्दियों के मौसम में 150 से 200 ग्राम प्रति एकड़ बीजों के बेहतर अंकुरण के लिए अधिकतम तापमान 18 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच उपयुक्त रहता हैं। बुआई से पूर्व बीजों को किसी फफूंदनाशक दवा जैसे थायरम, कैप्टान, बाविस्टिन इत्यादि से उपचारित बीजों की बुआई जमीन की सतह से लगभग 15 से 25 सेंटीमीटर ऊँची उठी हुई क्यारियों में ही करें। उठी हुई क्यारियाँ बनाने से अतिरिक्त जल आसानी पूर्वक बाहर निकल जाता हैं। जिससे बिमारियों का प्रकोप कम होता हैं।
क्यारियों की चौड़ाई 100 से 120 सेंटीमीटर तथा लम्बाई खेत की स्थिति के अनुसार रखी जा सकती हैं।  इसकी क्यारियों को तैयार करतें समय इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद या केचुआ खाद 5 से 8 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से डालकर अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। इसके बीजों की बुआई लाइनों में ही करें एवं दो लाइनों के बीच 6 से 10 सेंटीमीटर की जगह छोड़ें एवं साथ ही यह भी ध्यान रखें की बीजों की ज्यादा गहराई पर या में न डालें या छोड़ें। इनके बीजों की गहराई 1 से 2 सेंटीमीटर की हो एवं बीजों को ढकने के लिए बालू या रेत या कम्पोस्ट खाद का ही प्रयोग करें।  बीजों को किट अथवा चींटियों जैसे जीवो से बचने के लिए उनपर घास-फूस की पतली परत से ढके एवं बुआई के पश्चात झारे की सहायता से क्यारियों की सिंचाई करें एवं आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करतें रहें। गेंदें की पौधें मुख्य खेत में लगाने के लिए लगभग 22 से 25 दिनों में तैयार हो जाती हैं।  

Seeds of Balls Flower is a Good Profitable Deal
अच्छे मुनाफे वाला सौदा है गेंदें के फूलों का बीज 
वे किसान मित्र  जो बीज उत्पादन से जुड़े हैं या इसका उत्पादन करना चाहतें हैं। उनके लिए भी यह एक लाभदायक फसल हैं। गेंदें की शुद्ध बीज की प्राप्ति के लिए एक किस्म से दूसरी किस्म बीज उत्पादन के लिए जाली से ढके पौधे किस्म की दुरी 500 से 1000 मीटर की दुरी रखें। साथ ही साथ ख़राब एवं रोगग्रस्त पौधों को भी समय-समय पर निकलते रहे हैं जो रूप में परिपक्व होकर तैयार हो गए हो।  उस समय पौधें पर पुष्प या फूल सूखने लग जातें हैं। तुड़ाई के पश्चात फूलों को छाया में सुखाया जाता हैं तथा नमी एवं वायुरोधी डिब्बों में इसका भंडारण किया जाता हैं। 

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लेखक :- ए. पी. सिंह (www.agriculturebaba.com)  
सहायक :- लिनी श्रीवास्तव  M.Sc.(Agronomy)  



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