वैदिक संस्कृति
- आर्य संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'श्रेष्ठ' या 'कुलीन' है।
- क्लासिकीय संस्कृति में 'आर्य' शब्द का अर्थ है- एक उत्तम व्यक्ति।
- वेद चार हैं- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद ।
- वेदों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऋग्वेद है तथा इसे सर्वाधिक प्राचीन भी माना जाता है।
- ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद को 'वेदत्रयी' या 'त्रयी' कहा जाता है।
- 'वर्ण' शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। प्रारंभ में हम तीन वर्गों का उल्लेख पाते हैं - ब्रह्म, क्षत्र तथा विश
- ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुषसूक्त में सर्वप्रथम 'शूद्र' शब्द मिलता है।
- यहां चारों वर्गों की उत्पत्ति एक 'विराट पुरुष' के विभिन्न अंगों से बताई गई है।
- अथर्ववेद ओषधियों से संबंधित है।
- ऋग्वेद में ईश्वर महिमा (देवताओं की स्तुति), यजुर्वेद में कर्मकांड (बलिदान विधि) एवं सामवेद में संगीत का विस्तृत उल्लेख है
- ऋग्वेद में स्तोत्र एवं प्रार्थनाएं हैं, इसमें कुल 1028 सूक्त हैं। 1 ऋग्वेद में कुल 10 मंडल हैं।
- ऋग्वेद के दूसरे एवं सातवें मंडल की ऋचाएं सबसे प्राचीन हैं। पहला और दसवां मंडल नवीनतम है।
- ऋग्वेद के नौवें मंडल के सभी 114 सूक्त 'सोम' को समर्पित हैं।
- अथर्ववेद में कुल 20 अध्याय एवं 730 सूक्त तथा 5987 मंत्र हैं, इनमें 1200 मंत्र ऋग्वेद से लिए गए। इसमें तंत्र-मंत्र एवं वशीकरण के संदर्भ में साक्ष्य हैं।
- 'यज्ञ' संबंधी विधि-विधानों का पता यजुर्वेद से चलता है। यजुर्वेद के दो भाग हैं- शुक्ल यजुर्वेद, जो केवल पद्य में है तथा कृष्ण यजुर्वेद, जो कि पद्य और गद्य दोनों में है। शुक्ल यजुर्वेद को 'वाजसनेयी संहिता' भी कहा जाता है।
- यजुर्वेद का अंतिम भाग 'ईशोपनिषद' है, जिसका संबंध याज्ञिक अनुष्ठान से न होकर आध्यात्मिक चिंतन से है।
- सामवेद में कुल 1875 ऋचाएं हैं, जिनमें से 75 जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार 99 को छोड़कर शेष सभी ऋग्वेद में भी उपलब्ध हैं।
- सामवेद की 3 मुख्य शाखाएं हैं- 1. कौमुथीय, 2. राणायनीय तथा 3. जैमिनीय।
- उपनिषद दर्शन पर आधारित पुस्तकें हैं।
- उपनिषद को वेदांत भी कहा जाता है।
- उपनिषदों में प्रथम बार मोक्ष की चर्चा मिलती है। कठोपनिषद में यम और नचिकेता का संवाद उल्लिखित है।
- उपनिषदों में कुछ क्षत्रिय राजाओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं।
- विदेह के राजा जनक, पांचाल के राजा प्रवाहणजाबालि, केकय के राजा अश्वपति और काशी के राजा अजातशत्रु प्रमुख थे।
- वैदिक संहिताओं का सही क्रम है- वैदिक संहिताएं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद।
- सिंधु नदी का ऋग्वैदिक काल में सर्वाधिक महत्व था, इसी कारण इसका उल्लेख ऋग्वेद में सर्वाधिक हुआ है।
- सरस्वती ऋग्वैदिक आर्यों की सर्वाधिक पवित्र नदी थी।
- सरस्वती को 'मातेतमा', 'देवीतमा' एवं 'नदीत्मा' कहा गया है। ऋग्वेद में उल्लिखित कुभा (काबुल), क्रुमु (कुर्रम), गोमती (गोमल) एवं सुवास्तु (स्वात) नदियां अफगानिस्तान में बहती थीं।
- आश्रम व्यवस्था (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास) का प्रचलन वेदोत्तर काल में हुआ।
- छांदोग्य उपनिषद में केवल तीन आश्रमों का उल्लेख है, जबकि जाबालोपनिषद में सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है
- वरुण' देवता को वैदिक सभ्यता में 'नैतिक व्यवस्था' का प्रधान माना जाता था।
- इसी कारण वरुण को 'ऋतस्पगोपा' भी कहा जाता था। बृहस्पति को वैदिक देवताओं का पुरोहित माना जाता था।
- वैदिक साहित्य में कई ऐसी विदुषी स्त्रियों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने वेद मंत्रों की रचना की थी। यथा- अपाला, घोषा,विश्ववारा, लोपामुद्रा आदि ।
- लोपा मुद्रा अगस्त्य ऋषि की पत्नी थीं।
- वैदिक काल में सोने के हार को 'निष्क' कहा जाता था।
- बौद्ध जातक (Buddhist Jathakas) में तीन प्रकार के स्वर्ण सिक्कों का उल्लेख मिलता है।
- प्रथम क्रम में निशाका (Nishaka), दूसरे क्रम में सुवर्ण (Suvarna) और तीसरे क्रम में मशाका (Mashaka) | 1400 ई.पू. के बोगजकोई (एशिया माइनर) के अभिलेख में ऋग्वैदिक काल के देवताओं (इंद्र, वरुण, मित्र तथा नासत्य) का उल्लेख मिलता है
- बाल गंगाधर तिलक ने आर्यों के आदि देश के बारे में लिखा था। शतपथ ब्राह्मण यजुर्वेद का ब्राह्मण है।
- पुरुष मेध का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में हुआ है।
- गोत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में हुआ था।
- ऋग्वैदिक काल में यज्ञ की प्रधानता थी।
- दशराज्ञ युद्ध का उल्लेख ऋग्वेद के 7वें मंडल में है, जो (दस राजाओं का युद्ध) परुष्णी नदी (आधुनिक रावी नदी) के तट पर लड़ा गया, जिसमें भरतों के राजा सुदास की विजय हुई।
- ऋग्वैदिक आर्यों के पंचजनों में यदु, द्रुह्य, पुरु, अनु, तुवेशु शामिल थे।
- ऋग्वेद में उल्लिखित 'यव' शब्द का 'जौ' से तादात्म्य स्थापित किया गया है।
- वैदिक काल में सभा एवं समिति नामक दो संस्थाएं राजा की निरंकुशता पर नियंत्रण रखती थीं। सभा श्रेष्ठ एवं सभ्रांत लोगों की संस्था थी, जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी।
- अथर्ववेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है।
- ऋग्वेद में इंद्र का वर्णन सर्वाधिक प्रतापी देवता के रूप में किया जाता है, जिसे 250 सूक्त समर्पित हैं।
- ऋग्वेद में अग्नि को 200 सूक्त समर्पित हैं और वह इस काल का दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता है, तीसरा स्थान वरुण का है जो समुद्र का देवता एवं ऋत का नियामक माना जाता है।
- 'गायत्री मंत्र' ऋग्वेद में उल्लिखित है। इसके रचनाकार विश्वामित्र हैं।
- गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है।
- पुराणों की संख्या 18 है।
- पुराणों की रचना लोमहर्ष ऋषि तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा द्वारा की गई थी।
- पुराणों में भविष्यत काल शैली में कलियुग के राजाओं का विवरण मिलता है।
- 'सत्यमेव जयते' शब्द मुंडकोपनिषद से लिया गया है, जिसका अर्थ है-'सत्य की ही विजय होती है।'
- यह भारत के राजचिह्न पर भी अंकित है।
- ऋग्वेद की मूल लिपि ब्राह्मी थी। ऐतरेय तथा कौषीतकी ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं।
- वैदिक काल में गाय को 'अघन्या' (न मारे जाने योग्य) कहा जाता था।
लेखक :- अंशिका सिंह पटेल (B.A., B.T.C.) (www.agriculturebaba.com)
सहायक :- अरुणेन्द्र प्रताप सिंह (M.Sc. Agronomy)
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